यथार्थ और आभास

तेज दौड़ती जिंदगी में यथार्थ और आभासी जीवन आपस में कुछ इस कदर घुल-मिल गई हैं कि उनमें अंतर बहुत महीन हो गया है। इसका असर व्यक्तियों और समाज पर लाजिमी तौर पर पड़ रहा है। फेसबुक और वाट्सएप जैसी सोशल मीडिया साइट्स ने लोगों को इस तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया है कि हम अनचाहे ही उसके दास बनकर रह गए हैं। हालांकि ऐसी साइट्स, यानी आभासी दुनिया के अपने फायदे भी हैं, मगर उनकी कीमत हमें समाज से कटकर चुकानी पड़ रही है। दीगर है कि जो माध्यम जोड़ने के लिए था, वह तोड़ने का भी काम कर रहा है।

हाल में मेरे एक मित्र दिल्ली से गोवा जाते हुए मुंबई रुके। वह दो दिन मेरे घर पर ठहरे। पति-पत्नी और आठवीं क्लास व बीएससी में पढ़ने वाले उनके दो बच्चे। मैंने देखा कि वे चारों हर समय अपने-अपने मोबाइल फोन में डूबे रहते थे। खाना खाते समय भी एक हाथ में मोबाइल, टीवी पर मैच देखते समय भी और बातें करते समय भी। मैं जब उनसे दिल्ली के चुनाव की संभावना के बारे में पूछ रहा था, तो वे ‘हां-हूं’, ‘केजरीवाल के लिए मुश्किल है’ और ‘बीजेपी को चांस है’ जैसे जुमले बोलकर की-बोर्ड पर उंगलियां चलाने लगते थे। मैंने उनसे पूछा कि भई, मोबाइल पर इतना जरूरी क्या काम कर रहे हो, जो इतने सालों के बाद मिलने पर भी ढंग से बात तक नहीं कर रहे। उन्होंने जल्दी से यह कहकर फिर स्क्रीन में आंखें गड़ा लीं कि वाट्सएप पर हूं, अपडेट कर रहा हूं। वे लगातार कुछ न कुछ टाइप करते रहे।

हद तो तब हो गयी, जब अगले दिन मैं उन्हें मुंबई में कुछ जगहों पर घुमाने ले गया। गेटवे, म्यूजियम, जहांगीर आर्ट गैलरी, मैरीन ड्राइव, गिरगांव चौपाटी और शिवाजी पार्क, मैं जहां-जहां भी उन्हें ले गया, वे चारों हर जगह अपने फोटो क्लिक करके वाट्सएप पर अपलोड करने में ही लगे रहे। मैंने कहा भी कि घर लौटकर सारे फोटो एक साथ अपलोड कर लेना। इस पर उनका जवाब था कि जो मजा लाइव भेजने में है, वह बाद में भेजने में नहीं। एक-एक करके फोटो डालने से कंटिन्युटी बनी रहती है। सबको मजा आता है और खुद को तो जबरदस्त किक मिलती है।

तो दो दिन तक वे लगातार वाट्सएप पर व्यस्त रहे। उनके जाने के बाद ऐसा लगा कि कोई अजनबी घर आए थे और करने के लिए बातें न होने के कारण वे मोबाइल फोन पर टाइम पास करते रहे। इतने दिनों बाद एक दोस्त और उसके परिवार के मिलने का अहसास तक नहीं हुआ! हम अपने चारों ओर देखें, तो यह लत हर जगह, हर किसी को लगी नजर आती है। सुबह को अखबार पढ़ते समय खिड़की से बाहर देखाता हूं, तो लोग सड़क पर चलते हुए भी वाट्सएप पर अपडेट देते-लेते दिखते हैं। इसके कारण कई लोग सड़क हादसों का शिकार होकर जान भी गंवा चुके हैं। स्टेशन, बस स्टॉप, ट्रेन, बस, रेस्तरां, ऑफिस, सिनेमाघर, पब, बार, हर जगह लोग मोबाइल फोन के स्क्रीन में ही रमे रहते हैं।

अब जरा यह भी विचार किया जाये कि किस तरह के मेसेज आते हैं वाट्सएप पर, उनका हम पर क्या असर पड़ता है और किन गु्रप्स में क्या ट्रेंड्स चलते हैं। सुबह उठते ही ब्रश करने से पहले आप अपना मोबाइल उठाते हैं। रात को आये मेसेज को देखने और उनके जवाब देने में जुट जाते हैं। इसके बाद पूरे दिन आपका ध्यान पिंग, पिंग, पिंग पर ही लगा रहता है।

आप नाश्ता कर रहे हैं, आप ऑफिस के लिए निकले, आप ड्राइव कर रहे हैं या मेट्रो, ट्रेन, ऑटो, टैक्सी, बस में हैं, आप ऑफिस पहुंचकर काम शुरू करने ही वाले हैं, आप बॉस के कैबिन में हैं या आपके कैबिन में आपके सहकर्मी हैं, आप जरूरी काम कर रहे हैं, आप लंच कर रहे हैं, आप मीटिंग में हैं, आप चाय पी रहे हैं, आप घर लौट रहे हैं, आप परिवार के साथ गपशप कर रहे हैं, आप परिवार के साथ बहुत दिनों के बाद कोई फिल्म देखने गये हैं, आप सोने की तैयारी कर रहे हैं, यहां तक कि रात को किसी भी समय आपके मोबाइल फोन पर पिंग, पिंग, पिंग होती रहती है। और सुबह उठते ही यही सिलसिला फिर शुरू हो जाता है!

आखिर ये संदेश होते किस तरह के हैं?

वाट्सएप पर दिन की शुरुआत होती है, सुप्रभात और गुड मॉर्निंग से। औसतन रोज १०० से ज्यादा लोग ये संदेश भेजते हैं। कुछ निजी रूप से, तो ज्यादातर ग्रुप्स में। हर संदेश को पढ़कर उसका जवाब देने की जिम्मेदारी आपकी है। फिर आप भी तो उन संदेशों को कहीं न कहीं फॉरवर्ड जरूर करते हैं। उसके बाद उनके जवाब भी पढ़ते हैं। काम यहीं खत्म नहीं हो जाता। इन संदेशों के फोटो दो बार डिलीट भी तो करने होते हैं। पहले वाट्सएप से और फिर गैलरी से। इस तरह कीबोर्ड पर सैकड़ों ऐक्शन आप कर चुके हैं। और अभी तो बस सुबह हुई है।
आप रोज सैकड़ों अनचाहे पिंग पिंग, पिंग झेलते रहते हैं। शाम को जब जरा फुरसत में होते हैं, तो आपकी नजरें अपने मोबाइल की स्क्रीन पर और कान पिंग, पिंग, पिंग की आवाज पर लगे रहते हैं। कई बार तो आप कोई मेसेज आये बिना भी वाट्सएप चेक करते रहते हैं।

कुछ गलत या झूठी सूचनाओं की बानगी देखिये –
• अंधेरी का यह लड़का तीन दिन से गुम है। किसी को दिखे, तो प्लीज इस नंबर पर फोन करके सूचना दें।
• इस महिला को रेयर ब्लड ग्रुप की जरूरत है। इसकी जान बचाने के लिए इस नंबर पर सूचना दें।
ऐसे कई मेसेज देखकर मैंने फोन किया, तो पता चला कि वह नंबर अस्तित्व में ही नहीं था या रॉन्ग नंबर था।

इस तरह के भ्रामक मेसेज भी आते हैं –
• बीबीसी गूगल की रिपोर्ट है कि आज रात इतने से इतने बजे तक एक धूमकेतु धरती के बेहद पास से गुजरेगा और नासा का कहना है कि इस दौरान हमारे शरीर पर उसका हानिकारक असर होगा (ऐसा कुछ होता नहीं है। जब आप गूगल में सर्च करते हैं, तो किसी फेसबुक पेज पर कई साल पहले यह मेसेज पाते हैं। यही कॉपी-पेस्ट होकर बार-बार पोस्ट होता रहता है।)

• १४ फरवरी को वैलंटाइंस डे जोर-शोर से मनाया जाता है। इसी दिन लाहौर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी हुई थी। उन्हें कोई याद नहीं करता। ‌(लाहौर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी तो २३ मार्च, १९३१ को हुई थी।)

• हरिवंश राय बच्चन की शानदार कविता (यह वास्तव में कोई सस्ती सी तुकबंदी होती है। शायरी के किसी ब्लॉग से उठाकर इसे बच्चन जी के नाम से पोस्ट कर दिया जाता है।)

भले ही आप २००० से ज्यादा मेसेज, फोटो, ऑडियो, विडियो, जोक्स और शायरी पढ़ने और फिर डिलीट करने में घंटों लगायें, पर इससे बाज थोड़े ही आयेंगे। आखिर महत्वपूर्ण और काम की भी तो बहुत सी बातें आपको इससे मिलती ही हैं। इसीलिए तमाम कोफ्त और फ्रस्ट्रेशन के बावजूद आप इसके बिना नहीं रह सकते।

वैसे यह भी सच है कि अगर सही इस्तेमाल किया जाये, तो इसके फायदे भी बहुत हैं। दरअसल हम चाहें तो बहुत से लोगों के साथ टाइम पास चैट कर लें, या अनेक ग्रुप्स में घंटों निरर्थक बहसों में उलझे रहें, और चाहें तो इसका सकारात्मक इस्तेमाल करके इसका फायदा उठा लें।
हाल की कई घटनाओं में ऐसा किया भी गया है।

घटना १:

मुंबई के पास ठाणे में ट्रैफिक पुलिस के कॉन्स्टेबल जुबेर शमसुद्दीन तांबोली ने वाट्सऐप के जरिए ही ५ दिन पहले किडनैप की गई ६ साल की बच्ची को उसके परिवार के पास सुरक्षित पहुंचा दिया। गुमशुदा लोगों के फोटो वाट्सऐप पर कई ग्रुप्स में होते हुए अक्सर वहां तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्हें पहुंचना चाहिए। ऐसे कई बच्चों, खासकर लड़कियों को गलत हाथों में पड़ने से बचाया गया है। कई लावारिस शवों की पहचान वाट्सएप के जरिये ही हुई है।

घटना २:

एक एनआरआई अपना पासपोर्ट, कुछ जरूरी कागजात और करीब ८० हजार रुपये एक टैक्सी में भूल गया। उसने पुलिस कंट्रोल रूम को यह जनकारी दी। वहां से वाट्सऐप पर यह संदेश डाला गया। आखिर संदेश उस टैक्सी वाले तक पहुंचा। तीन घंटे में अपने बेशकीमती दस्तावेज पाकर एनआरआई की खुशी का ठिकाना न रहा।

घटना ३:

१२वीं क्लास के बोर्ड एग्जाम से एक दिन पहले एक छात्र का हॉल टिकट खो गया। गनीमत थी कि उसने हॉल टिकट का फोटो अपने मोबाइल फोन में क्लिक कर रखा था। वही फोटो उसने वाट्सऐप पर कई ग्रुप्स में डाल दिया। आधे घंटे में उस छात्र को हॉल टिकट वापस मिल गया और उसकी सारी परेशानी दूर हो गयी।

स्कूलों की पीटीए का तो पूरा कामकाज ही आजकल वाट्सएप पर चलता है। कई लोग वाट्सऐप पर सबके काम आने वाली जानकारियां भी डालते हैं। हेल्पलाइन नंबर, स्थानीय समस्याएं, जन-रुचि की बातें, ताजा सूचनाएं और जनरल नॉलेज शेयर की जाती हैं। कुछ लोग प्रेरणास्पद उद्धरण व घटनाएं और जोक्स आदि भी शेयर करते हैं। कुछ का हंसी-मजाक चलता रहता है।

कुल मिलाकर बात यही है कि किसी भी अन्य साधन या सुविधा की तरह वाट्सएप का इस्तेमाल भी हम पर ही निर्भर है। हम चाहें, तो उसका इस्तेमाल सही दिशा में करें या उस पर वक्त जाया करें।

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