तनाव की प्राकृतिक चिकित्सा

चिंता ज्वाल सरीर बन, दावा लगि लगि जाय।

प्रकट धुआं नहिं देखिए, उर अंतर धुंधुवाय॥

उर अंतर धुंधुवाय, जरै जस कांच की भट्ठी।

रक्त मांस जरि जाय, रहै पांजरि की ठट्ठी॥

कह ‘गिरिधर कविराय, सुनो रे मेरे मिंता।

ते नर कैसे जिए, जाहि तन व्यापे चिंता॥

लोक भाषा के गिरधर कविराय की छह पंक्तियों की कुंडलियां आम जन की जुबान पर चढ़ी हैं! उन्होंने इस रचना में जिस चिंता की बात की है, वही आज का तनाव है। इसका बाहर से धुआं नहीं दिखाई देता पर शरीर रूपी बन में अगर चिंता की ज्वाला धधक जाय तो हृदय क्लेश पाने लगता है। इसकी जलन इतनी गहरी होती है कि रक्त मांस मज्जा को जलाकर देह सिर्फ हाड़ की ठठरी रह जाता है! ऐसा मनुष्य आखिर कैसे जिए?  हार्टअटैक, कार्डिएक अरेस्ट, वेन ब्लॉकेज जैसी अवस्था इस स्थिति की ही देन है!

मैंने इसी वर्ष उम्र के ९६ वर्ष पार किए हैं और कभी अस्पताल में दाखिल नहीं हुआ। अपने अनुभवों से यह बता सकता हूं कि शरीर की सभी व्याधियों का सीधा कनेक्शन आपके दिमाग से है। अगर आप चिंता और तनावग्रस्त हैं तो आपके शरीर का जो भी अंग कमजोर है, उस पर गाज गिरेगी। अगर आप कफ प्रकृति के हैं तो आपका दमा बढ़ जाएगा। अगर आपकी त्वचा सेंसिटिव है तो आपको एग्जीमा हो जाएगा। पेट की तो सभी बीमारियां जैसे अपच, पित्त, कब्ज आदि आपके मानसिक तनाव से जुड़ी हैं! सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि आप अपने तनाव को बच्चों में स्थानांतरित कर देते हैं।

पहले वाला समय तो रहा नहीं जब परिवार अपने आप में एक मोहल्ला हुआ करता था जहां चाचा ताऊ सबके बच्चे आपस में खेलते कूदते, लड़ते झगड़ते बड़े हो जाते थे। खुले मैदान में हम गिल्ली डंडा खेलते, पतंग उड़ाते, भागते दौड़ते स्कूल पहुंच जाते।

आज की जीवनशैली में रफ्तार बहुत तेज हो गई है! बच्चे हर वक्त हाथ में मोबाइल पर गेम खेलना चाहते हैं। गेम भी कैसी? एक जांबाज सबको पछाड़ते हुए आगे बढ़ रहा है – नदी नालों, पहाड़ को लांघते हुए। जरा सी आंख हटी, उंगली रुकी कि दुर्घटना घटी! यह गेम नहीं, बचपन से ही रफ्तार और तनाव में जीने का अभ्यास डालना है!पर बच्चों को हम सही माहौल तभी दे पाएंगे जब तनावरहित जीवन खुद भी जिएं!

देखें, तनाव मुक्त रहने के लिए क्या कर सकते हैं हम


  1. सबसे पहले तो हम यह मानकर चलें कि समय बहुत ताकतवर है। प्रकृति भी निरंतर परिवर्तनशील है। सालभर में ऋतुएं भी बदलती हैं। जिस भी कारण से आपको तनाव है, वह हमेशा रहने वाला नहीं है। आपको अपने भविष्य का नहीं, सिर्फ उस पल को टालना है जो आपको अवसादग्रस्त कर रहा है। अपने परीक्षाफल से निराश होकर कई युवा अवसाद में चले जाते हैं और आत्महत्या तक कर लेते है। उन्हें नहीं मालूम कि एक नाकामी कितनी कामयाबियों को अपने भीतर छिपाए है।
  2.  तनाव की एक बड़ी वजह है – अपेक्षा रखना। मां बाप बच्चों से, पति अपनी पत्नी से, मालिक नौकर से या आप खुद अपने आप से उम्मीदें पाल लेते हैं। यह वैसा ही है जैसे ताश का महल बनाना और फिर उसे ढहते हुए देखकर गश खा जाना। जो जैसा है या जो कुछ आपका समय आपको दे रहा है, उसे स्वीकार करें। स्वीकृति आपको भ्रम में नहीं रखती। जिस दिन अपने बारे में या औरों के बारे में मुगालते रखने बंद कर दिए तो कोई भी दुर्घटना या विध्वंस आपको किसी तरह का सदमा नहीं देगा। सारे तनाव की जड़ यह अपेक्षा ही है।
  3. एक बड़ा कारण है – अपने को सबका नियामक समझना। आप चाहते हैं कि सामने वाला आपका कहना माने, आपसे अनुशासित हो। अगर कोई आदमी आपसे गैरसलूकी करता है या आप पर नाराज होता है तो निश्चित मानिए कि वह आपका तो बाद में, पहले अपना नुकसान कर रहा है। सामनेवाले को तो आप बदल नहीं सकते, अपने आपको जरूर अपने नियंत्रण में रख सकते हैं। कोई आपको गाली भी दे, अगर आप गाली से उद्वेलित नहीं हुए तो विश्वास मानिए, गाली देने वाले का निशाना चूक जाएगा, उसका मकसद डिफ्यूज हो जाएगा। उसे बदलने की  जगह खुद को बदलिए ।

अंत में दो छोटे से उपाय


मान लीजिए, आपका मन शांत नहीं हो रहा है। आप अपनी सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया पर ध्यान दें। गुस्से और चिंता में हमेशा हमारी सांस लेने की प्रक्रिया तेज हो जाती है और हम छोटी छोटी सांसें लेते छोड़ने लगते हैं जिसके कारण पूरा ऑक्सीजन शरीर में नहीं पहुंच पाता। आप अपनी एक एक सांस पर ध्यान दें और लंबी लंबी सांसें भीतर लें और छोड़ें। यह प्रक्रिया आप रोज रात को सोने से पहले करें। कुछ ही देर में आप अपने को स्थिर और तनावरहित महसूस करेंगे और गहरी नींद सोएंगे।

कभी कभी यह सब करने पर भी हो सकता है, आपको लगे कि भीतर कुछ खौल रहा है। आखिर आप इंसान हैं, संत तो नहीं। पर होना आपको संत ही है। तब आप एक तकिया लें। उसे पीट पीट कर अपने को हल्का कर लें। तकिए को कुछ नहीं होगा। जितना धुनो, उतनी मुलायम होती है और फैलती है। बेहतर यही होगा कि इस प्रक्रिया की नौबत ही न आने दें।

खान-पान को कैसे भूला जा सकता है। आप जितना तेल मसाले वाला तला भुना तीखा गरिश्ठ खाना खाएंगे, उतना ही आपकी अंतड़ियों को उसे पचाने में मशक्कत करनी पड़ेगी। घर में एक मृत शरीर पड़ा रह जाए तो हम उसे जल्दी से जल्दी फूंक आने की जुगत लगाते हैं। सोचकर देखें कि जिस मृत पशु या पक्षी का आप मांस पका रहे हैं, वह कितने दिनों से कोल्ड स्टोरेज में पड़ा है। प्रकृति ने हमें तरह तरह की रंगीन और स्वाद से भरपूर साग सब्जियों फलों की संपदा दी है। सादा, शाकाहारी खाएं। निरोग रहें।

यदि आपका अध्यात्म में विश्वास है। हताशा और चिंता जब देह पर प्रकोप दिखाने लगे तो जिस देवता, जिस भी आराध्य पर आपका भरोसा है, उस पर ध्यान केंद्रित करें। हनुमान चालीसा का पाठ होया दुर्गा सप्तशती का, जपुजी साहब हो या कुरान की आयतें, आपकी आस्था आपको संबल देगी क्योंकि सवाल आराध्य से ज्यादा अपने आराध्य पर आस्था का है। भक्ति चाहे विफल हो जाए, आस्था अपनी चमक दिखाने में सफल होती है।

एक विद्वान का कथन याद रखें – जिंदा रहने के लिए हमारे शरीर को बहुत कम खाने की जरूरत है। हम जितना खाना खाते हैं – उसका एक चैथाई हमें जिंदा रखता है और तीन चैथाई डॉक्टर (के व्यवसाय) को जिंदा रखता है। कम खाएं, सेहतमंद खाएं और डॉक्टरों के चंगुल से बाहर तनावमुक्त लंबा जीवन जिएं।

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.