प्रेमचंद | munshi premchand | munshi premchand in hindi | munshi premchand kahaniya | munshi premchand stories in hindi | short stories by munshi premchand

प्रेमचंद को पढ़ना अपने आप को नैतिक बनाना है | हरियश राय | To read Premchand is to moralize yourself | Hariyash Rai

प्रेमचंद को पढ़ना अपने आप को नैतिक बनाना है

प्रेमचंद हमारे समय के सबसे बड़े और विशिष्‍ट कथाकार हैं। ३१ जुलाई को उनका जन्‍म दिन होता है। जुलाई के इस महीने में आईये उनकी तीन कहानियो को फिर से याद करते हैं। ये तीन कहानियां है ‘बड़े भाई साहब,’ ‘ईदगाह’ और ‘दौ बैलों की कथा’।

बड़े भाई साहब

प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब पढ़ते हुए बच्‍चों के मनोविज्ञान का पता तो चलता ही है। यह भी पता चलता है कि रटने वाली शिक्षा व्‍यवस्‍था असरदार नहीं होती। कहानी में दो भाइयों के मनोविज्ञान को बेहद रोचक तरीके से पेश किया गया है।

कहानी में बडा भाई चौदह साल का है। वह दिन रात पढाई़ करता है क्‍योंकि उसका मानना है कि तालीम रूपी भवन की बुनियाद मजबूत होनी चाहिए। वह परीक्षा में फेल होता रहता है। छोटा भाई हमेशा खेल कूद में मगन रहता है, फिर भी क्‍लास में अव्वल दर्जे से पास होता है। इसलिए बडा ़भाई व्‍यंग्‍य करता हुआ कहता है कि तुम अपनी मेहनत से पास नहीं हुए हो, तुम्‍हारे हाथ में बटेर लग गई है। बड़े भाई साहब की डांट सुनकर छोटा भाई पढ़ने का टाइम टेबल बनाता है, लेकिन कुछ ही दिनों में सब भूलकर खेल कूद में लग जाता है। दूसरी बार परीक्षा में फिर बडा भाई फेल और छोटा भाई पास हो जाता है।

बडा भाई छोटे भाई को उसकी लघुता का एहसास कराने से नहीं चूकता। छोटा भाई बड़े भाई के खिलाफ नहीं जाता। एक दिन मैदान में कटी पतंग को लूटने के लिए दौड़ते वक्‍त बड़े भाई साहब छोटे भाई के सामने आ जाते हैं। उसे खूब खरी खोटी सुनाते हैं और कहते हैं कि ‘समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती है। हमारी अम्मा ने कोई दर्जा पास नहीं किया और दादा भी शायद पांचवी जमात के आगे नहीं गये। हम दोनों चाहे सारी दुनिया की विद्या पढ़ लें, अम्मा और दादा को हमें समझाने और सुधारने का अधिकार हमेशा रहेगा। इसलिए नहीं कि वे हमारे जन्मदाता हैं बल्कि इसलिए कि उन्‍हें दुनिया का हमसे ज्‍यादा तजुर्बा है और रहेगा’। जब कटी हुई पतंग बड़े भाई साहब के सिर पर से गुजरती है तो बड़े भाई साहब के भीतर मानो छोटा भाई समा जाता है और वह भी कटी हुई पतंग की डोर पकड़कर भागने लगते हैं।

प्रेमचंद ने बहुत खू़बसूरती से बाल मनोविज्ञान को प्रस्‍तुत किया है। इसीलिए यह कहानी क्‍लासिक कहानी के रुप में याद की जाती है। प्रेमचंद वर्तमान शिक्षा पद्धति पर भी सवालिया निशान लगाते हैं, जो छात्रों में विवेकशीलता पैदा करने के बजाए रट कर पास होने पर ज्‍य़ादा जोर देती है।

कहानी में प्रेमचंद यह साबित करते हैं कि जीवन में सफल होने के लिए केवल किताबी ज्ञान ही काफी नहीं है, जीवन की पाठशाला से लिया हुआ ज्ञान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। कहानी में प्रेमचंद ने परिवार में बड़े भाई के रौब को मनोवैज्ञानिक तरीके से सामने रखा है, जिसके कारण छोटा भाई हमेशा डांट ही खाता रहता है। यह कहानी दोनों भाईयों की मानसिकता को रोचक तरीके से सामने लाती है। छोटा भाई भावुक होकर और बड़े भाई के प्रति सम्‍मान की भावना से उसकी हर बात सुनता है। बडा ़भाई बड़े होने के कारण उस पर रौब जमाने से नहीं चूकता।

प्रेमचंद ने वाक्य दर वाक्य किशोर मानसिकता और उससे जुड़े सवालों को भारतीय पारिवारिक ढांचे में रखकर देखा है। बड़े भाई साहब छोटे भाई के सामने एक आदर्श भी प्रस्‍तुत करना चाहते हैं। वह अपने छोटे भाई को ज्ञान देना अपना नैतिक दायित्व मानते थे। कहानी के अंत में पाठक के मन में दोनों भाइयों के प्रति एक लगाव सा महसूस होता है और कहानी पाठकों के अंतर्मन को गहराई से प्रभावित करती है।

प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से यह बताने की भी कोशिश की है कि बाल मन की इच्‍छाओं को दबाने से जीवन में प्रतिकूल असर पड़ता है और बच्‍चे अपना समुचित विकास नहीं कर पाते। कहानी यह बताने में भी सफल है कि बचपन में पढाई़ के साथ-साथ खेलकूद भी जरूरी है ताकि बच्‍चों का समुचित विकास हो सके और उनके मन में प्रफुल्लता व उल्लास बना रहे।

ईदगाह

प्रेमचंद की एक मशहूर कहानी ‘ईदगाह’ बच्‍चों के मनोविज्ञान और हमारी परम्‍पराओं के अनुरूप घर के बुजुर्गों के मान-सम्‍मान की कहानी है। हमारा सामाजिक-पारिवारिक परिवेश किस तरह और किस सीमा तक हमें अपने परिवार से सघन रुप से जोड़े रखता है, कहानी इसका संकेत करती हुई हामिद और दादी अमीना के भावनात्मक लगाव व सरोकार की कहानी बन जाती है।

कहानी के केन्द्र्र में मुसलमानों का पवित्र त्योहार ईद है। हामिद चार-पांच साल का दुबला पतला लड़का है। माता-पिता गुजर चुके हैं, लेकिन उसे बताया गया है कि उसके अब्बाजान रुपए कमाने गए हैं। उसकी अम्मीजान अल्लाह मियां के घर से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीजें लाने गई हैं। इसी कल्‍पना से हामिद प्रसन्न रहता है।

रमजान के तीस दिनों के रोजे के बाद आने वाली ईद बच्‍चों में अत्यधिक उल्लास का संचार करती है। बच्‍चे नये-नये कपड़े पहनकर परिवार के बड़े-बुजुर्गों के साथ ईदगाह जाते हैं और ईद की नमाज अदा करते हैं। लेकिन हामिद के पास नये कपड़े नहीं हैं। उसकी दादी अमीना उसके पायजामे में नाडा¸़ डालते हुए कहती है कि ‘कम से कम नाडा ़तो नया है, गरीब के कपड़ों में नया नाडा ़होना ही एक शगुन है।’ ईद पर लगने वाले मेले के लिए दादी अपने पोते हामिद को तीन पैसे देती है, जिससे कि वह मेले में मिठाई खा सके, खिलौने ले सके। हामिद मेले में अपने दोस्तों को झूला झूलते, मिठाइयां खाते और खिलौने खरीदते देखता है, लेकिन अपने तीन पैसे कहीं खर्च नहीं करता। एकाएक उसे एक दुकान पर चिमटा दिखाई देता है। चिमटे को देखते ही उसे याद हो आता है कि रोटियां बनाते वक्‍त दादी के हाथ जल जाते है। वह अपनी सारी इच्छाओं का दमन करके अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद लेता है।

कहानी में प्रेमचंद ने हामिद को एक जिम्मेदार बच्‍चे के रुप में चित्रित किया है। जब वह चिमटा लेकर घर आता है तो दादी उस पर नाराज होती है। हामिद अपराधी भाव से कहता है ‘‘तुम्‍हारी, उंगलियां तवे पर जल जाती थीं, इसलिए मैंने ले लिया।’’ हामिद से यह सुनकर दादी रोने लगती है और दामन फैलाकर हामिद को दुआएं देती है। परंतु हामिद इस रहस्य को समझने के लिए बहुत छोटा था। कि वह तो दादी के लिए चिमटा लाया है, फिर दादी रो क्यों रही है?

इस मोड़ पर आकर कहानी एक ऐसे मुकाम तक पहुंचती है, जहां संबंधों की सघनता है और दादी के प्रति सम्‍मान है, फिक्र है और अपनेपन का उच्चतम शिखर है। चिमटा मिलने से दादी को जो सुख ओर संतोष की अनुभूति होती है, उससे कहानी बेहद मार्मिक और बेजोड़ बन जाती है। प्रेमचंद ने हामिद के चरित्र में चार साल के बालक का भोलापन उकेरा है, वहीं परिवेश और परिस्थितियों के कारण उसमें उत्‍पन्‍न परिपक्वता को भी सामने रखा है। भोलेपन और परिपक्वता के समन्वय की यह अद्भुत कहानी है। हामिद का कार्य कहानी को विशिष्‍ट कहानी बनाता है और हमारे सामने एक आदर्श रचता है। प्रेमचंद ने हामिद के माध्यम से अपने बड़े-बुजुर्गों का सम्‍मान व आदर करने वाला एक ऐसा चरित्र खडा ़किया है जिससे आज भी लोग प्रेरणा ले सकते हैं और अपने बुजुर्गों का जीवन बेहतर बना सकते हैं।

दो बैलों की कथा

प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ एक मशहूर कहानी है। इसमें प्रेमचंद ने दो बैलों के माध्यम से जीवन में आजादी, प्रेम और दोस्ती जैसे मूल्यों को स्थापित किया है और यह बताना चाहा है कि आजादी किसी भी कीमत पर मिले, उसे हर हाल में हासिल करना चाहिए।

कहानी में हीरा और मोती दो बैल हैं जो झूरी नामक किसान के यहां रहते हैं, काम करते हैं। झूरी भी उन्‍हें बहुत प्यार से रखता है। झूरी का ‘गया’ नाम का साला एक बार इन दोनो बैलों को काम के लिए अपने घर ले जाता है, पर बैलों को लगता है कि उन्‍हें बेच दिया गया है। ये दोनों बैल रास्ते भर गया को परेशान करते रहते हैं। गया का घर इन बैलों को पराया घर लगता है। भूख लगने पर भी कुछ नहीं खाते और रात को रस्सियां तुडा ़कर वापस झूरी के घर आ जाते हैं। इस तरह आने पर झूरी की पत्‍नी उन्‍हें नमकहराम कहती हुई पशुओं की देखभाल करने वाले नौकर से कहती है कि आज इन बैलों को सूखा भूसा ही दिया जाये। अगले दिन गया फिर से इन बैलों को अपने घर ले जाता है और मोटी रस्सियों से बांधकर सूखा भूसा देता हैं। लेकिन गया की लड़की चुपके से रोज रात को एक-एक रोटी देती है। उसके प्रेम के कारण दोनो बैल वहीं पर काम करते रहते है लेकिन एक दिन ये दोनों बैल गया की लड़की की मदद से वहां से फिर भाग जाते हैं क्‍योंकि वह कहती है कल तुम दोनों को नाथा जायेगा। राह में खेत में मटर खाते हुए पकड़े जाने पर दोनों बैल कांजी हाउस पहुंच जाते हैं। वहां ये दोनों बैल कांजी हाऊस की दीवार को अपने सींगों से ढहाकर वहां के जानवरों को भाग जाने देते है। कांजी हाऊस वाले इन दोनों बैलों को एक कसाई को बेच देते हैं। कसाई जब इन्‍हें अपने घर ले जा रहा होता है, तो ये दोनों बैल अपने घर के रास्ते को पहचान कर वापस झूरी के घर आ जाते हैं। इन बैलों को वापस अपने घर देखकर झूरी और उसकी पत्‍नी बहुत खुश हो जाते हैं।

कहानी में हीरा और मोती नाम के दो बैल हमारे देश के सीधे-सादे लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कई मुसीबतों को सहते हुए भी आजादी की चाह को बनाए रखते हैं और एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। कहानी की एक खूबी यह भी है कि कहानी में मनुष्य और पशुओं के भावात्मक संबंधों को बहुत गहराई से उकेरा गया है। कहानी यह बताती है कि मनुष्य की तरह पशु भी प्रेम और स्नेह के भूखे होते हैं और उनके साथ भी उसी तरह व्यवहार करना चाहिए जिस तरह इंसानों के साथ किया जाता है। कहानी के दोनों बैल घर के मालिक झूरी के साले गया को नहीं मारना चाहते क्‍योंकि उसकी लड़की इन दोनों बैलों को एक-एक रोटी खिलाती है। मोती कहता है, ‘‘यदि हमने इस घर के मालिक को मार दिया तो यह बेचारी लड़की अनाथ हो जायेगी।  इस पर हीरा कहता है ‘‘तो घर की मालकिन  को मार देते हैं।’’ इस पर भी मोती कहता है ‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूले जाते हो।’’  कहानी में प्रेमचंद इन बैलों के माध्यम से स्‍त्री के सम्‍मान की भी रक्षा करते हैं।

कहानी यह बताती है कि संकट के समय हमेशा एक साथ रहना चाहिए और किसी भी समस्या का हल मिल-जुल कर ही निकालना चाहिए। खेत में एक सांड इन दोनों बैलों पर हमला करता है तो हीरा और मोती दोनों मिलकर उसका मुकाबला करते हैं। कहानी यह भी बताती है कि हमारी आजादी बहुत कीमती है। इसे बनाए रखने के लिए हमेशा सजग और संघर्षशील रहना चाहिए।

प्रेमचंद हीरा और मोती की आजादी को तत्कालीन राष्‍ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के साथ जोड़ने के साथ मानवीयता के तकाजों पर ले जाते हैं और पशुओं के स्वभाव को बहुत गहराई से देखते हैं। प्रेमचंद की यह दृष्टि ही उन्‍हें ग्रामीण समाज का चितेरा कहानीकार बनाती है। ग्रामीण जीवन की पकड़ ही प्रेमचंद की सही जमीन थी जिस जमीन पर खड़े होकर बाद के कहानीकारों ने अपने आप को पल्लवित और पोषित किया।

अधिक हिंदी ब्लॉग पढ़ने के लिए, हमारे ब्लॉग अनुभाग पर जाएँ।


हरियश राय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.