मुहावरों(मुहावरे) की कहानियां
आधी या एक ही पंक्ति में वक्ता के आशय को गहराई से स्पष्ट कर देने वाले वाक्य-प्रयोग को मुहावरे और लोकोक्तियां कहा जाता है। कहावतें और मुहावरे एक दिन, महीने या साल में नहीं बन जाते, वो किसी भी भाषा की कसौटी पर लगातार घिसने के बाद ही अपना स्वरूप ग्रहण करते हैं।
हमारे यहां कहा जाता है – ‘एक पंथ दो काज’, जो रसखान के सरस पद्य ‘चलो सखी वा ठौर को जहां मिले ब्रजराज, गोरस बेचन, हरि मिलन एक पंथ दुई काज।’ से लिया गया है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन और दूध की बिक्री की बात के द्वारा बहुत ही मीठे ढंग से एक प्रयास में दो कार्य होने को सिद्ध किया है।
मुहावरे स्वतंत्र वाक्य न होकर वाक्य का एक अंश होते हैं और वाक्य में आवश्यकता के अनुसार क्रिया बदलते हुए किसी भी तरह से उपयोग में आ सकते हैं जैसे – ‘श्रीगणेश करना’, ‘श्रीगणेश किया’ इत्यादि। जबकि लोकोक्तियां अपने आप में एक स्वतंत्र वाक्य होता है। लोकोक्ति के पीछे अनिवार्य रूप से कोई कहानी अनिवार्य रूप से जुड़ी होती है।
जैसे कोई कहे कि ‘यह तो वही बात हुई कि घर का भेदी लंका ढाए।’ इस लोकोक्ति का अर्थ है हमारे सभी राज जानने वाला ही हमें नुकसान पहुंचा सकता है। और इस लोकोक्ति के पीछे की कहानी से शायद ही कोई अपरिचित हो। रावण का सगा भाई विभीषण, जो कि रावण के घर-जीवन के सभी रहस्य जानता था उसकी मदद से ही राम लंका पर विजय पाने में सफल रहे थे। जब जब पारिवारिक विश्वासघात की बात आती है हमेशा इसी बात को उद्धृत किया जाता है।
हमारे इतिहास या वर्तमान जीवन की मजेदार घटनाओं से भी बहुत सी लोकोक्तियों अथवा कहावतों का उद्भव हुआ है। बहुत धीरे होने वाले काम के लिए एक लोकोक्ति का बहुधा प्रयोग किया जाता है बीरबल की खिचड़ी पकाना इसके पीछे की मजेदार कथा है। एक बार शहंशाह अकबर ने घोषणा की कि यदि कोई जाड़े में घुटनों तक ठंडे पानी में खडा ़रह जाएगा तो उसे पुरस्कृत किया जाएगा। गरीब धोबी ने हिम्मत की और सारी रात पानी में ठिठुरते बिताई और ईनाम लेने दरबार पहुंचा। बादशाह ने पूछा ‘तुमने नदी में रात कैसे बिताई?’
‘महाराज, मैंने महल के कमरे में जल रहे दीपक को देखते हुए सारी रात गुजार ली।’
‘मतलब तुम महल के दीए से गरमी ले रहे थे तुम्हें कोई इनाम नहीं मिलेगा।’ राजा ने गरीब को कुछ नहीं दिया।
सब देख रहे बीरबल को ये अन्याय बुरा लगा। वो अगले दिन दरबार में नहीं आए। बुलाए जाने पर जवाब दिया – ‘मैं खिचड़ी पका रहा हूं, पकते ही खाकर आऊंगा। बादशाह खुद तफ्तीश करने पहुंचे। बादशाह ने देखा, लम्बे डंडे के सिरे पर एक घडा ़बंधा है और नीचे एक दीया जल रहा है।
पास बैठे बीरबल ने बादशाह को सलाम किया – ‘आइए जहांपनाह, खिचड़ी बस पकने ही वाली है।’
‘ऐसे तो खिचड़ी कभी नहीं पकेगी?’ बादशाह ने गु़स्से से कहा।
बीरबल बोला – ‘जहांपनाह, जब धोबी को बहुत दूर बने महल के दीए से गरमी मिल सकती है तो ये खिचड़ी क्यों नहीं पक सकती।’
बादशाह को बात समझ आ और धोबी को ईनाम मिल गया।
इसी तरह अनचाहे ही एक काम के साथ दूसरा काम सिर पर आ पड़ने के लिए एक मजेदार लोकोक्ति है। नमाज पढ़ने गए थे, रोजे गले पड़ गए। एक मुसलमान था, वह नास्तिक तो नहीं था लेकिन उसे मस्जिद जाना, नमाज पढ़ना, रोजे रखना पसंद नहीं था। पत्नी ने खु़दा का खौफ दिखाते हुए उसे मस्जिद भेजा कि ‘रमजान में तो कम से कम नमाज पढ़कर आओ।’ पति बेमन से गया, वहां मौलवी साहब ने नमाज पढ़वाई और उसके बाद में दीनी तकरीर देते हुए सभी नमाजियों को रोजे रखने को पाबंद किया। बंदा पाबंद होकर आ गया। पत्नी ने पूछा क्या हुआ। आदमी बड़े दुखी मन से बोला, ‘मैं तो नमाज पढ़ने गया था और वहां रोजे गले पड़ गए।
चलिए एक और कहानी‧‧‧एक पंडित जी थे, जो नित्य नियम से अपने बटुकों के साथ गंगा-स्नान के लिए जाते थे। एक दिन पंडित जी स्नान करके नदी से बाहर निकल ही रहे थे कि उन्हें एक मोटा सा कम्बल बह कर जाता दिखा। माया महाठगिनी ने पंडित जी को लुभा लिया। उन्होंने धोती की लाँग कसी और लपक लिए मुफ्त के कम्बल की ओर। कम्बल आराम से उनके हाथों में आ लिपटा। तभी अचानक पंडित जी कम्बल से धींगामुश्ती करने लगे।
‘स्वामी जी! लगता है कम्बल भारी हो गया, आपसे समेटा नहीं जा रहा। न हो तो कम्बल छोड़ के आ जाओ।’ बाहर खड़े एक बटुक ने हाँका लगायी। ‘मैं तो कम्बल छोड़ दूं, पर ये कम्बल भी तो मुझे छोड़े।’ डेढ़ क्विंटल के ‘रीछ’ से जूझते पंडित जी की मिमियाती आवाज आई। इसी कहावत को इस तरह भी कहते हैं ‘कंबल के धोखे में रीछ पकड़ लेना’।
राजस्थान में अपनी गलत-सही बात पर जिद पूर्वक अड़े रहने के लिए मुहावरा है – ‘ठाकुर सा नाला तो वहीं गिरेगा’। कहते हैं किसी गांव में एक ठाकुर की हवेली के पास एक आदमी रहता था। एक दिन उसने अपने घर का गंदे पानी का नाला ठाकुर के दरवाजे के सामने खोल दिया। ठाकुर ने समझाया, डांटा, धमकाया लेकिन वह आदमी नहीं माना। अंत में ठाकुर ने पंचायत बुलाई और उस आदमी की शिकायत की। पंचों ने सारी बात सुनी और निर्णय दिया कि ठाकुर सही है। उन्होंने उस आदमी को कहा कि वह नाले का मुंह दूसरी ओर कर ले, लेकिन वह जिद्दी आदमी किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं था। नाराज होकर पंचों ने कहा हम तुम्हें जाति से निकाल देंगे। स पर अड़ियल आदमी ने हाथ जोड़कर कहा ‘पंचों की राय सिर माथे, लेकिन ठाकुर सा नाला तो वहीं गिरेगा।
कह सकते हैं प्रत्येक देश की भाषा-बोली में इस तरह के तरह के अनेक मुहावरे और लोकोक्तियां होते हैं। आम जीवन में सहज भाव से बगैर किसी वर्ग, जाति अथवा धर्म के भेदभाव से प्रयुक्त होते हैं। इनके प्रयोग से बात अर्थपूर्ण ही नहीं, मजेदार और विश्वसनीय भी बन जाती है।
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ओम प्रकाश
Wonderful story! It was fun and entertaining. I guess it will help students to know about more and more idioms and where to implement them. However, you should also have a look at the best website to read Hindi story online by visiting Pratilipi.
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