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दांतों की देखभाल | डॉ सूरज माहेश्‍वरी | Tooth Care | Dr Suraj Maheshwari

दांतों की देखभाल

ईश्वर की अनुपम अनुकृति है मानव शरीर और उससे भी सुंदर सौगात है हमारी मुस्कान। एक प्यारी सी मुस्कान अनगिनत अनकहे शब्दों को कह देती है मगर यह मनमोहक मुस्कान दांतों और मसूड़ों की स्वच्छता, सुंदरता उनकी चमचमाती सफेदी पर निर्भर करती है। दूसरी जरूरी बात कुदरत की बनाई पौष्टिक एवं स्वादिष्ट चीजों का स्वाद लेने के लिए, चबाने के लिए, स्वस्थ सुंदर दांतों की जरूरत होती है। स्वस्थ चमकते सुंदर दांत हमारे सेहतमंद शरीर का आईना होते हैं। तभी तो कहा जाता है – दांत खराब तो तंदुरुस्ती खराब।

हम खाते हुए बाहरी वातावरण के संपर्क में आते हैं और कीटाणुओं का पहला डेरा होता है दांतों पर। हमारे दांत कैल्शियम फॉस्‍फोरस और अन्य खनिज से मिलकर बने होते हैं। ऊपर का हिस्सा क्राउन व नीचे का हिस्सा जड़ कहलाता है जिसमें खून एवं दर्द की नसें होती हैं।

दांतों में कैविटी होना या कीडा ़लगना : खाने के कण दांतों पर चिपक जाते हैं। उन पर मुंह में मौजूद कीटाणु अपना कार्य तुरंत शुरू कर देते हैं। खाने के कणों में अम्ल बनना शुरू हो जाता है एवं दांतों में सड़न या कैरीज शुरू हो जाती है। यदि कीटाणु ने दांतो की ऊपरी परत तक असर किया है तो ऐसी स्थिति में दंत चिकित्सक उसे साफ कर एवं फिलिंग कर बचा सकते हैं किंतु यदि कैविटी गहरी हो गई है या ठंडा या गर्म पदार्थ खाने से अति संवेदनशीलता हो रही है, दर्द हो रहा हो, दांतों के आसपास सूजन हो, यदि दांत टूटने लगा हो तो आरसीटी या रूट कैनाल ट्रीटमेंट ही एकमात्र दांत को बचाने का उपाय है। इसमें दांत से मृत्यु समाप्त हो रहे उत्तक को हटाकर संक्रमण रोका जाता है एवं रूट कैनाल को भर के स्थाई रूप से बंद कर दिया जाता है एवं दांत को बचाया जा सकता है।

दांतों की दूसरी प्रमुख बीमारी है झनझनाहट : जब दांतों की ऊपरी सतह एनामेल घिस जाता है तो उसके नीचे स्थित दर्द की नसों में अत्यधिक संवेदनशीलता की वजह से ठंडा एवं गर्म या तेज हवा से भी दांतों में झनझनाहट पैदा होने लगती है। झनझनाहट के इलाज के लिए तुरंत दंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए।

दांतो की तीसरी प्रमुख बीमारी है टेढ़े मेढ़े दांत। यह बचपन से हो सकती है या बाद में भी विकसित हो सकती है। इसे ऑर्थोडॉन्टिक पद्धति से करीब १३ साल की उम्र के बाद ठीक किया जा सकता है। जिसमें दांतों पर तार बांधकर या डेंटल ब्रेसेज लगाकर उपचार किया जाता है।

मसूड़ों की बीमारियों में सबसे प्रमुख पायरिया है। इसमें मसूड़ों में सूजन व खून आना तथा मुंह से बदबू आना प्रमुख लक्षण हैं। हम जो भी खाते पीते हैं वह दांतो की एवं मसूड़ों की ऊपरी परत पर चिपक जाता है। अगर ढंग से ब्रश ना किया जाए तो यह चिपका ही रह जाता है। इस परत को डेंटल प्लाक कहते हैं जो की चिपचिपी व पारदर्शी परत है। धीरे-धीरे ऐसी अनेक परतें एक के ऊपर एक जमा होती चली जाती हैं और एक ठोस परत का रूप ले लेती हैं इसे टार्टर या कैलकुलस कहते हैं। टार्टर की परत सख्त मोटी व पीली होती है। लंबे समय तक टार्टर के जमा रहने से मसूड़े अपनी जगह छोड़ने लगते हैं फल स्वरूप दांत ढीले पड़ने लगते हैं।

‘सोमवार हो या हो रविवार, स्कूल जाना हो या हो त्योहार;

दिन में ब्रश जो करे दो बार, उसे मिलेगा सभी का प्यार।’

दांतो की एवं मसूड़ों की सुरक्षा के लिए क्या ना करें —

१‧ दांतो का उपयोग कैंची या ओपनर के समान बिल्कुल ना करें। इससे दांतों के टूटने का एवं घिसने का खतरा रहता है।

२‧ अत्यधिक एवं नियमित नींबू चूसने से उसमें मौजूद साइट्रिक एसिड दांतों में मौजूद विभिन्न खनिज पदार्थों को क्षति पहुंचाता है। दांतों में संवेदनशीलता बढ़ सकती है।

३‧ सोडा युक्त पेय पदार्थों एवं कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक में मौजूद अम्ल और शर्करा की अधिकता से दांतों में कैविटी बन सकती है। दांत घिस जाते हैं। मुंह से दुर्गंध आती है।

४‧ अत्यधिक दबाव या देर तक ब्रश नहीं करना चाहिए इससे दांतों की जड़ों एवं बाहरी परत को नुकसान पहुंचता है, दांत हिलने लगते हैं एवं उसमें संवेदनशीलता आ जाती है।

हमें क्या करना चाहिए :

१‧ कम करें कार्बोहाइड्रेट‧‧‧‧केवल मीठा ही नहीं, कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा भी दांतों के लिए नुकसानदेह है क्योंकि वे शुगर में तब्दील हो जाते हैं। और बैक्टीरिया पैदा करते हैं।

२‧ विटामिन सी की मात्रा बढा ़दें‧‧‧‧‧विटामिन सी मसूड़ों के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इसकी कमी से मसूड़ों में सूजन एवं खून का रिसाव हो सकता है जो बीमारी बढ़ने पर स्कर्वी नामक रोग में तब्दील हो जाता है।

३‧ चाय ब्लैक या ग्रीन टी में पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट पॉलिफिनॉल्स दांतों और मसूड़ों में कैविटी और प्लाक बनने से रोकते हैं।

४‧ स्ट्रॉ का प्रयोग करें : ज्यादातर स्पोर्ट्स ड्रिंक सोडा साइट्रिक एसिड और फास्फोरिक एसिड से बने होते हैं जिस से दांतों को नुकसान होता है स्ट्रॉ का प्रयोग करने से यह हानिकारक एसिड सीधे दांतों के संपर्क में नहीं आते।

५‧ कैल्शियम युक्त भोजन का सेवन करें। शरीर में ९९ परसेंट कैल्शियम दांतो और हड्डियों में होता है इसलिए दूध दही चीज को भोजन में शामिल करें।

६‧ स्विमिंग के बाद ब्रश करना जरूरी होता है। स्विमिंग पूल में क्लोरीन का प्रयोग किया जाता है, इसका ओवरडोज दांतो के लिए एसिड का काम करता है। अतः स्विमिंग के बाद ब्रश करना  चाहिए।

७‧ हर दिन सेव गाजर एवं मोटा अनाज खाएं। फल सब्जियों में एस्ट्रिजेंट प्रॉपर्टी होती है। यह दांतो के लिए स्क्रब का काम करते हैं और दांतों एवं मसूड़ों की चमक बरकरार रखते हैं।

८‧ हर रोज दो बार सुबह और रात को सोने से पहले ब्रश व कुल्ला करें। २ मिनट से ज्यादा ब्रश ना करें।

९‧ हर बार कुछ भी खाने के बाद कुल्ला करें।

१०‧ हर ६ महीने में दंत चिकित्सक से अपने दांतो का नियमित चेकअप करवाएं।

कुल्ला करने एवं ब्रश करने का सही तरीका :

हर बार खाने के बाद अच्छी तरह पानी से कुल्ला करें। कुल्ला करते समय अपनी उंगली से मसूड़ों की मालिश करें। गर्म पेय पदार्थ के तुरंत बाद ठंडा पानी या पेय पदार्थ ना लें, इससे दांत हिलने लगते हैं। दांतों को पिन, सुई या माचिस की तीली आदि से न कुचरें। मसूड़ों पर ब्रश को ऊपर से नीचे व गोल घुमाएं। कृपया हर ३ महीने में अपना ब्रश बदल लें। अपना टूथपेस्‍ट बदल बदल कर अलग-अलग कंपनियों का लें। माउथ-वॉश का इस्तेमाल करें। इससे मुंह में बदबू पैदा करने वाले बैक्टीरिया साफ होते हैं।

जीभ या मुंह के अंदर का कैंसर‧‧‧‧  पान, सुपारी, गुटका या जर्दा खाने या मुंह में दबाकर रखने से दांतों के सिरे काफी नुकीले हो जाते हैं। यह मुंह में जख्म या छाले बना देते हैं। लंबे समय तक यदि छाला ठीक ना हो रहा हो तो यह मुंह के कैंसर का लक्षण भी हो सकता है।

रोग के लक्षण‧‧‧‧

१‧ मुंह में छाले हो जाए व ३ सप्ताह में न भरें।

२‧ लगातार मुंह में दर्द रहता हो।

३‧ मुंह के अंदर के भाग या गले का मोटा पन।

४‧ जीभ मसूड़े व गाल के अंदर वाले हिस्से पर सफेद व लाल रंग के निशान।

५‧ मुंह का सूखा रहना।

६‧ खाना खाने या निगलने में दक्कत आना।

७‧ जीभ या जबड़े को हिलाने में दिक्कत आना।

८‧ जबड़े का सूजना।

९‧ वजन कम होना। इसमें से कोई भी लक्षण ३ सप्ताह से अधिक हो तो डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।

ल्यूकोप्लकिया (द्यद्गह्वद्मश्श्चद्यड्डद्मद्बड्ड) : मुंह में छोटे छोटे फोड़े, या सफेद धब्बे हो जाते है, जिनमें बहुत दर्द होता है। ऐसा धूम्रपान, चुभते हुए दांत, विटामिन्स की कमी, संक्रमण से हो सकता है।

ओरल सबम्यूकस फायब्रोसिस (श्ह्म्ड्डद्य ह्यह्वड्ढद्वह्वष्श्ह्वह्य द्धद्बड्ढह्म्श्ह्यद्बह्य) : मुंह के अंदर के म्यूकस का लचीलापन कम हो जाता है, वह सफेद व कठोर हो जाता है।

लक्षण : बार बार छाले होना।

मुंह का पूरी तरह से न खुलना

जीभ का पूरी तरह से बाहर न निकलना

मुंह सूखना, मुंह में जलन होना

शुरुआती चरणों में इलाज संभव है,परंतु गंभीर रूप में यह कैंसर में तब्दील हो सकता है।

तम्बाकू का सेवन जान स्वास्थ्य के लिये बडा ़खतरा है। तम्बाकू खाकर यत्र-तत्र थूकना, एक सार्वजनिक खतरा है इससे कोरोना, स्वाईन फ्लू, इंसेफेलाइटिस, आदि का संक्रमण फैलने का खतरा है।

फंगल इंफेक्शन (oral candidiasis) मुंह में सफेद पैच हो जाते है। खाना बेस्वाद लगता है। जलन, दर्द, खाना निगलने में तकलीफ हो सकती है।

दांत को निकलवाने के बाद डेंटल इंप्लांट्स एक अत्याधुनिक तकनीक है। इसमें नकली दांतों को स्क्रू के मदद से मसूड़ों में लगा दिया जाता है जो बिल्कुल असली दांतों जैसे लगते हैं। इस के बाद मुंह की सफाई का विशेष ध्यान रखना होता है।

दांतो एवं मसूड़ों के बारे में प्रचलित भ्रांतियां

१‧ ऊपर के दांत निकलवाने से आंखें कमजोर हो जाती हैं।

२‧ मसूड़ों या दांतो की सफाई करवाने से दांत कमजोर हो जाते हैं परंतु सच तो यह है कि मसूड़ों पर से गंदगी की परत हटाने से मसूड़े दांतों पर अपनी पकड़ और मजबूत करते हैं।

३‧ ज्यादा और जोर से ब्रश करने से दांत ज्यादा साफ होते हैं, मगर वास्तविकता यह है कि दांत घिस जाते हैं और उनमें सेंसिटिविटी आ जाती है।

४‧ गर्भावस्था में दांतों का इलाज नहीं करवाना चाहिए। बल्कि हर महीने चेकअप करवाना चाहिए, क्योंकि गर्भावस्था एवं डिलीवरी के बाद, खानपान बदल जाता है, खाने में गरिष्ठ चीजें दी जाती है।

५‧ दूध के दांतों का इलाज नहीं करवाना चाहिए क्योंकि वह तो गिरने ही वाले हैं मगर वास्तविकता यह है कि दूध के दांत ही परमानेंट दांतों के लिए जगह बनाते है।

६‧ गांवों में कुछ लोग झाड़-फूंक के चक्कर में एक पतली पाइप से फूंक की मदद से कीडा ़निकालने का दावा करते हैं यह नामुमकिन है कृपया इन लोगों के चक्कर में ना पड़ें।

७‧ तंबाकू या नसवार से मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं। मगर वास्तविकता यह है कि तंबाकू से दांत साफ करने से तंबाकू मुंह की लार के माध्यम से खून में अवशोषित होकर एक सुखद अनुभूति का एहसास कराता है। इससे मन तथा भावनात्मक रूप से स्वस्थ होने का आभास होता है।

कोशिश कीजिए कि हमारे असली एवं सुंदर चमकदार दांत हमारा जीवन पर्यंत साथ निभाएं। बस हम उनका ध्यान रखेंगे तो वह भी हमारा पूरा साथ देंगे। कोई समस्या नहीं हो तो भी हर ४ महीने में दांतों का चेकअप अपने हेल्थ प्रोग्राम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।

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डॉ सूरज माहेश्‍वरी

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