मेडिकल मिथक और सत्य
१. जब भी दर्द हो, दर्द की दवा ले लेनी चाहिए
चिकित्सक अक्सर अपने प्रिस्क्रिप्शन में दर्द की दवा स्ह्रस् लिखते हैं, जिसका अर्थ है कि जब दर्द बर्दाश्त से बाहर हो तो दवा ले लें। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हमें जरूरत से ज्यादा दर्द की दवा फांक लेनी है। एक टैबलेट के बदले चार टैबलेट खाने से दर्द पर चौगुना प्रभाव नहीं पड़ेगा। हमें प्रयास यही करना है कि दवा कम से कम लेनी पड़े।
अगर दवा से दर्द पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा, तो अधिक दवा खाने की बजाय चिकित्सक से परामर्श लेना बेहतर। प्रयास यही हो कि घर-घर में मौजूद ये पेनकिलर बिना चिकित्सक परामर्श रोजमर्रा के दर्द के लिए प्रयोग न किए जाएं।
२. अब मैं ठीक हो गया, तो दवा की जरूरत नहीं रही
अगर आपके चिकित्सक पांच दिन की दवा लिखते हैं, और आप तीसरे दिन ही स्वस्थ महसूस करने लगते हैं, तो क्या दवा बंद कर देनी चाहिए? यह संभव है कि आपके चिकित्सक कुछ दवाओं के संबंध में ऐसा कहें। खास कर ऐसी दवाएं जो किसी लक्षण (जैसे दर्द, ज्वर) से जुड़ी है। लेकिन, रोग के इलाज के लिए दवाओं की एक कुल समयावधि निश्चित की जाती है। उससे पहले दवा बंद करने पर यह संभव है कि रोग पुनः लौट आए।
जैसे एंटीबायोटिक आदि की खुराक पूरी करनी आवश्यक होती है, ताकि शरीर में जीवाणु पूरी तरह खत्म हो जाएं। बल्कि कुछ दवाएं जैसे मधुमेह या रक्तचाप की दवा, हार्मोन आदि अचानक बंद करना शरीर को हानि भी पहुंचा सकता है। इसे चिकित्सक परामर्श से ही डोज घटाना या धीरे-धीरे बंद करना चाहिए।
३. जब भी खांसी या बुखार हो, एंटीबायोटिक खा लेना चाहिए
एक मरीज को पेशाब में कुछ जलन थी। जांच में यूरीन इंफेक्शन आया, और एक प्राथमिक एंटीबायोटिक दी गयी। उनकी जलन घटने के बजाय बढ़ती ही चली गयी। आखिर तेज बुखार में एडमिट करना पडा।़ जब यह जांच की गयी कि उनके जीवाणु पर किस एंटीबा योटिक का असर होगा, तो मालूम पडा ़कि सिर्फ एक एंटीबायोटिक ही उन पर असर करेगा। उसकी एक डोज इतनी महंगी थी, जितने में बाकी दवाओं के दस पत्ते आ जाएं। कारण यह था कि उन्होंने बचपन से ही हर ऐसे जलन या बुखार में एंटीबायोटिक फांक ली थी। अब उन पर सभी ने असर करना बंद कर दिया था। यह आखिरी विकल्प भी अगर दो-चार बार लग गया, तो यह भी काम करना बंद कर देगा। उसके बाद वह क्या करेंगे?
यह ध्यान रखें कि एंटीबायोटिक सिर्फ चिकित्सक परामर्श से ही लें। कई खांसी-बुखार का कारण वायरस होता है, जिन पर एंटीबायोटिक कोई असर नहीं करते। वे सिर्फ बैक्टीरिया पर असर करते हैं, वायरस पर नहीं। जो लोग बिना परामर्श एंटीबायोटिक खाने के बाद सुधार महसूस करते हैं, वे संभवतः उस दवा की वजह से नहीं, बल्कि अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता से ठीक हुए। कभी-कभार वायरस के साथ बैक्टीरिया भी मौजूद होते हैं, जिन पर वह असर कर जाते हैं। लेकिन, ऐसे उपाय चिकित्सक से पूछ कर ही करें।
४. एमआरआई स्कैन कराने से शरीर को नुकसानदेह रेडिएशन मिलता है
पिछले दशकों में कई नए तरह के जांच आए हैं। अब ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जो एक सुरंगनुमा मशीन के अंदर जाकर अपने दिमाग, पेट, घुटनों या शरीर के किसी हिस्से का स्कैन करा चुके हैं। इनमें एक है सीटी स्कैन और दूसरा है एमआरआई। दोनों की मशीनें दिखने में एक जैसी होती है, जिसमें मरीज एक बिस्तर पर लेटते हैं, और बिस्तर एक सुरंग में जाती है। कुछ देर बाद स्कैन पूरा होता है और वे बिस्तर सहित बाहर आ जाते हैं।
इनमें से सीटी स्कैन में एक्सरे की तरह रेडिएशन का इस्तेमाल होता है। इसका बहुत अधिक प्रयोग नुकसानदेह हो सकता है, लेकिन आज के समय इसकी डोज घट गयी है। गर्भवती महिलाओं के लिए सीटी स्कैन लगभग पूरी तरह निषेध है। बच्चों को भी खामखां इस जांच में नहीं भेजा जाता। लेकिन, यह ध्यान रखें कि चिकित्सक ही यह बेहतर निर्णय लेंगे कि यह जांच करानी है या नहीं। अगर बीमारी ऐसी है, जिसमें सीटी स्कैन करना अत्यावश्यक है, तो न्यूनतम संभव डोज रखकर यह जांच की जाती है।
दूसरी तरफ एमआरआई में कोई भी नुकसानदेह रेडीयेशन नहीं। यह स्कैन शरीर को रेडिएशन हानि नहीं पहुंचाता। मैग्नेट होने के कारण शरीर में किसी तरह का धातु या उपकरण इससे प्रभावित हो सकता है। इसलिए स्कैन से पहले सभी धातु निकाल दिए जाते हैं, और अगर कोई धातु शरीर के अंदर इंप्लांट हो, तो विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है।
५. हृदय रोग बुढाप़े की बीमारी है। हट्टे-कट्टे युवाओं को यह नहीं हो सकता
पिछले वर्षों में कई युवा सेलिब्रिटी, खिलाड़ियों और अपनी फिटनेस का ध्यान देने वालों लोगों को दिल का दौरा पडा ़या मृत्यु हुई। इन खबरों के बाद कई तरह की अटकलें चली। षड्यंत्रों से लेकर जीवनशैली पर प्रश्न उठे। जीवनशैली में बदलाव तो एक कारण है ही, लेकिन युवाओं में हृदय रोग कोई अजूबी चीज नहीं है। साठ से कम उम्र के व्यक्तियों में धमनियों का ब्लॉक होना संभव है। युवा महिलाओं में भी यह रोग बहुधा मिलता है।
इसलिए यह आवश्यक है कि कम उम्र से ही धूम्रपान, शराब आदि के सेवन कम या बंद करने के साथ-साथ अपने भोजन और जीवनशैली में बदलाव लाए जाएं। तनाव घटाने के उपाय किए जाएं। किन्हीं चिकित्सक या अस्पताल के माध्यम से वार्षिक स्वास्थ्य जांच कराना और सुझावों को अमल लाना इस अकस्मात घटना से बचाव कर सकता है। कई बार छाती या पेट के ऊपरी हिस्से के दर्द को सामान्य एसिडिटी मानकर किनारे कर दिया जाता है, लेकिन जांच करा लेना बेहतर है। इसी तरह ब्लड-प्रेशर (रक्तचाप) की समस्या भी कम उम्र में शुरू हो सकती है।
६. असुरक्षित यौन संबंध की अगली सुबह अगर इमरजेंसी पिल नहीं ली, तो बच्चा होना तय है
असुरक्षित यौन संबंध के बाद गर्भधारण संभव है। किंतु गर्भधारण एक खास समय में हुए यौन संबंध से ही संभव है। हालांकि अगर बच्चा न चाहते हों, तो असुरक्षित यौन संबंध से बचना चाहिए। पुरुष और महिला दोनों के लिए निरोध के अनेक उपाय उपलब्ध हैं, जो यौन संबंध के पहले या दौरान लिए जा सकते हैं। इमरजेंसी निरोधक पिल उपलब्ध है, जिसे चिकित्सकीय परामर्श से लिया जा सकता है।
एक और मिथक युवाओं में प्रचलित है कि दोहरे कंडोम पहनने से उसके फटने की संभावना घट जाती है। किंतु चिकित्सकों ने यह निष्कर्ष पाया है कि दोहरे कंडोम में उसके फटने की संभावना बढ़ ही जाती है।
७. चश्मा लगाने से आंखें खराब हो जाती है
यह मिथक अपने-आप में अटपटा लगता है क्योंकि चश्मा तो लगता ही तभी है, जब आंखें खराब होती है। लेकिन नेत्र रोग विशेषज्ञ अक्सर इस सवाल से गुजरते हैं कि चश्मा लगाने से क्या हमेशा के लिए आंखें खराब ही होती चली जाएगी।
इस बात से सभी सहमत होंगे कि नेत्र एक महत्वपूर्ण इंद्रिय है, और दृष्टि में दोष घटाने के उपयोग किए जाने चाहिए। यह स्थिति तो सर्वोत्तम है कि बिना चश्मे के दृष्टि अच्छी रहे। लेकिन, अगर किसी तरह का दोष है जिसका निवारण चश्मे से हो सकता है, तो वह समय पर लगवा लेना चाहिए। गलत चश्मा लगाने से कुछ सिरदर्द हो सकता है, उसे परामर्श से बदलवा लेना चाहिए।
८. मासिक धर्म के दौरान महिलाएं गर्भवती नहीं हो सकती
यह मिथक कई युगलों में प्रचलित है और बाकायदा एप भी चल पड़े हैं जो सुरक्षित सेक्स की अवधि बताते हैं। इस मान्यता के अनुसार मासिक धर्म के आस-पास के चार-पांच दिन सुरक्षित हैं, जब महिलाएं गर्भवती नहीं हो सकती। यह मान्यता भले किताबी रूप से सही लगे, मगर प्रायोगिक रूप से गलत सिद्ध होता है। इसके कई कारण हैं।
पहली बात यह कि मासिक चक्र अनियमित भी हो सकता है और रक्त-स्राव चक्र के बीच में भी हो सकता है। उम्र बढ़ने के साथ यह देखा गया है कि मासिक चक्र छोटे होने लगते हैं। दूसरी बात कि ऑव्यूलेशन यानी अंडे का रिलीज होना मासिक चक्र में कुछ पहले या बाद में भी हो सकता है। ऐसे गर्भधारण अक्सर मिलते हैं जो मासिक धर्म के चौथे-पांचवे दिन ही हो गए। तीसरी बात कि कोई भी एप या गणना की विधि पक्की नहीं होती। इन विधियों का उपयोग गर्भधारण से बचने के लिए नहीं, बल्कि इसके ठीक उलट गर्भधारण के उपयुक्त समय को जानने के लिए किया जाता है। गर्भधारण से बचने का उपयोग तो गर्भनिरोधक विधियां (पिल, कंडोम, कॉपर टी, स्पाइरल आदि) ही हैं। इस विषय पर शंका-निवारण के लिए अपने चिकित्सक या स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
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डॉक्टर प्रवीण झा