हमारे पालतू हमारे साथी
कालांतर से मनुष्य का जुडाव़ पशु-पक्षियों से रहा है। लोक कथाओं में पशु-पक्षियों का विवरण खूब मिलता है। साधु-संतों के आश्रम पशु-पक्षियों से गुलजार रहा करते थे। पशु-पक्षी पर्यावरण संतुलन को बनाये रखते हुये माहौल को सुंदर और गतिशील बनाते हैं। इनकी प्राकृतिक हरकतों से हमारा तनाव, दबाव, थकान, पीडा ,दूर होती है। शायद इसीलिये मनुष्य ने इन्हें पालने का विचार बनाया होगा। पालतू तोता, मैना, लव बर्डस् मनोरंजन के साथ मानसिक शांति का भी बोध कराते हैं। घोडा,, गधा, ऊंट, हाथी, गाय, बैल, भैंस जैसे पशु उपयोगिता के लिये पाले जाते रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी से आती जा रही आधुनिक सुविधाओं ने इन पशुओं की उपयोगिता को लगभग खत्म कर दिया है।
पेट की बात होती है तो सबसे पहले कुत्ते की छवि सामने आती है। स्वामिभक्ति और मनुष्य के साथ रहने की आदत बना लेना जैसी खूबियों के कारण इन्हें पालतू बनाने का ख्याल आया होगा। विदेशों में बिल्ली पालने का चलन है लेकिन भारतीय परिवारों की पहली पसंद कुत्ता है। कुत्ते पालने के कुछ कारण हैं। बच्चों को पप्स आकर्षित करते हैं। वे पिल्ला पालने के लिये हठ करते हैं। माता-पिता तैयार हो जाते हैं कि बच्चे पेट के माध्यम से शेयर-केयर करना सीखेंगे। कुछ लोग शौक के लिये पेट रखते हैं। जिसके पास जितनी अच्छी नस्ल का कुत्ता है। उसकी सामाजिक हैसियत उतनी बड़ी मानी जाती है मुझ जैसे लोग जरूरत के लिये पेट रखते हैं। घर के बड़े परिसर की सुरक्षा के लिये कुत्ता रखना जरूरी हो गया है। इन दिनों मेरे घर में सत्तर किलो वजन वाली सेन्ट बर्नाड बिच सालसा है। पेट रखने से पहले अच्छी तरह सोच लें पेट की जरूरत है या नहीं। यदि बच्चों की जिद या शौक के लिये पेट रखते हैं शौक पूरा होने के बाद पेट बोझ लगने लगता है। उसकी उपेक्षा होने लगती है। उसकी जरूरत है तो उसकी देखभाल घर के सदस्य की तरह की जाती है। कुछ रईस परिवारों में कुत्तों को ऐसे आलीशान तरीके से रखा जाता है कि उसका जीवन मनुष्य से अधि मधुर और सुखप्रद जान पड़ता है। पशु-पक्षियों की प्रवृत्ति स्वतंत्र विचरण करने की होती है। पालतू के रूप में बंधक बनाकर हम इनकी आजादी छीनते हैं। वे खुद को बंधक न समझें इसलिये उनके आहार, आराम का ध्यान रखना जरूरी है। पेट रखने से पहले मानसिकता बना लें। ऊंची और बड़ी नस्ल के कुत्तों के लिये पर्याप्त खुली जगह होनी चाहिये। जगह कम है तो छोटे कद-काठी के पेट उचित रहेंगे। पशु-पक्षी मनुष्य की तरह स्वार्थी नहीं सरल होते हैं। थोड़ी सी आत्मीयता पाकर मनुष्य पर भरोसा करने लगते हैं। कुत्ते बहुत वफादार होते हैं। प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मी की तरह हमारे घर की सुरक्षा करते हैं। सुरक्षाकर्मी दगाबाजी कर सकते हैं पेट नहीं करते। इनकी खुराक में जो खर्च होता है उससे कई गुना अधिक ये अपना कर्तव्य करते हैं। इसलिये जरूरी हो जाता है पेट के आहार, आराम, स्वच्छता, व्यायाम, नींद का ध्यान रखा जाये। भूख, नींद, आराम प्रत्येक प्राणी की जरूरत है। मनुष्य की तरह इनकी दिनचर्या भी निश्चित और व्यवस्थित होनी चाहिये।
आहार: इनके भोजन का समय सुनिश्चित करें। भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट हो। मांसाहार इनकी जरूरत है पर शाकाहारियों के घर में यह सम्भव नहीं हो पाता। सालसा को ठंड में बाजार से खरीदे गये उबले अंडे दिये जाते हैं। सामान्यतौर पर पर्याप्त दूध, मोटी रोटियां, सोया बड़ी, पेडिग्री आदि दी जाती है। आम, तरबूज रुचि से खाती है। खाने का बर्तन साफ हो। पर्याप्त पानी रखा जाये और रोज ताजा पानी भरा जाये। बहुत अधिक खिलाने से इनमें मोटापा बढ़ता है। मोटापा इनकी आयु को दो-तीन साल कम कर देता है। मधुमेह, बी‧पी‧, हृदय रोग, हड्डियों में चोट जैसी बीमारियां हो जाती हैं, जिन्हें हम समझ नहीं पाते। इन्हें सांस लेने में अड़चन होती है, तो ये सुस्त हो जाते हैं, दौड़ नहीं पाते। उम्र बढ़ने के साथ इनका मेटाबॉलिज्म धीमा होने लगता है। अतः बड़ी आयु के कुत्तों की खुराक कम हो जाना स्वाभाविक है। ये अपने पाचन का ध्यान रखते हैं। ओवर ईटिंग नहीं करते। पाचन ठीक न होने पर सालसा बगीचे की दूब और घास के कुछ तिनके चबाती है। खाना देनेवाले का ये विशेष अदब करते हैं। मैं कहीं बाहर से आती हूं तब सालसा जिस तरह उत्साहित होकर मेरे पास आती है वह उसका आभार व्यक्त करने का तरीका है। इन्हें तय समय में ही आहार दें। छोटे बच्चे बिस्किट, चॉकलेट, चिप्स, आइसक्रीम जो कुछ खाते हैं थोडा-,थोडा ,पेट की ओर फेंकते जाते हैं।
बच्चों को खाते देख पेट पास आकर बैठ जाते हैं। यह अशोभन लगता है। वे सबकुछ खाने के ऐसे शौकीन हो जाते हैं कि छीन-झपट सीख लेते हैं। एक परिचित परिवार का बच्चा ऑरेंज बार चूसते हुये बूंद-बूंद रस कुत्ते के लिये फ्लोर पर टपका रहा था। बूंदे चाटते हुये कुत्ता इतना आतुर हो गया कि झपट्टा मारकर बच्चे के मुंह से ऑरेंज बार छीनते हुये बच्चे के ओंठ चबा डाले। बच्चे को अस्पताल ले जाना पडा।, पेट को प्रतिशोध लेना भी आता है। एक परिचित ने ऊंची नस्ल के कुत्ते की दो-चार साल देख-रेख की फिर वह बोझ लगने लगा। उसके सामने सूखी रोटियां फेंक दी जातीं। एक दिन कुत्ते ने आक्रमण कर परिचित का मुंह नोंच लिया। अस्पताल में भर्ती रहे। यह घटना स्थानीय अखबारों की सुर्खियां बनी थी। पेट में प्रतिस्पर्धा की भावना भी होती है। मेरे घर का परिसर बडा ,होने से गौरैया की अच्छी संख्या है। उन्हें भात दिया जाता है। सालसा की नजर पड़ती है तो पहले भात खाती है फिर दूध-रोटी। गौरैया दूध-रोटी पर घात लगाये रहती हैं।
आराम: पेट के लिये एक सीमा और अनुशासन तय करना चाहिये। पूरे घर में खुला न छोड़ इनके रहने का स्थान घर के भीतर या बाहर जहां उचित स्पेस हो नियत करें। स्थान साफ-सुथरा आरामदायक हो जो इन्हें ठंड, गर्मी से राहत दे। रात में ये घर की रखवाली करें इसलिये इन्हें दिन में भरपूर आराम और नींद मिलनी चाहिये।
स्वास्थ्य: इधर सुनने में आ रहा है कोविड, सॉर्स व अन्य संक्रमण पशु-पक्षियों से मनुष्य तक पहुंच रहे हैं अतः पेट के स्वास्थ्य का ध्यान रखना जरूरी है। इन्हें ठीक वक्त पर एन्टी रेबीज इंजेक्शन लगवायें। स्वास्थ्य परीक्षण कराते रहें। इन्हें पशु चिकित्सालय ले जाना कठिन काम है। पशु चिकित्सक या कम्पाउण्डर को घर बुलाया जा सकता है। सालसा की खाल मोटी व फर घने हैं अतः कभी-कभी खुजली जैसी व्याधि हो जाती है। कम्पाउण्डर इंजेक्शन लगाकर उपचार कर देते हैं।
स्वच्छता: पेट की साफ-सफाई का ध्यान रखना जरूरी है। इनको नहलाने का समय निर्धारित करें। बड़े डील वाले कुत्तों को नहलाना, पाउडर लगाना मेहनत का काम है अतः कुछ लोग अनियमितता बरतने लगते हैं। यह पेट और मनुष्य दोनों के लिये सही नहीं है। दोनों को संक्रमण होने की गुंजाइश बन जाती है। जो पेट घर के भीतर रहते हैं उनकी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिये। बच्चे इन्हें छुयें-सहलायें तो साबुन से अच्छी तरह हाथ धोने को कहें। बच्चे नासमझी में इनकी पूंछ मरोड़ देते हैं। ऐसी चेष्टा से पेट क्रोधित हो जाते हैं। बच्चों को सावधानी का अर्थ बतायें साथ ही पेट को आरंभ से अनुशासन में रहने के लिये कमांड करें। हम जैसा चाहते हैं ये जल्दी सीख लेते हैं। आरंभ से चेनिंग की आदत डालें कि आगन्तुकों को भय न लगे। उसके किसी व्यवहार से पड़ोसियों, परिचितों को व्यवधान न पहुंचे। लोगों को देखकर भौंकता है तो भौंकने दें। रोकेंगे तो उसे संदेश जायेगा मनुष्य को देखकर नहीं भोंकना चाहिये।
व्यायाम: पेट के लिये शारीरिक व्यायाम जरूरी है। खुला परिसर इनके लिये नियामत है। इनके साथ दौड़ें, खेलें, थोडा ,वक्त बितायें। बॉल फेंकी जाये तो सालसा दौड़कर उठा लाती है। प्रेरित करती है पुनः फेंकी जाये। सालसा से पहले जो कुत्ता था, उसके साथ मेरा बेटा दौड़ता था। बेटा जैसे ही स्कूल से आता कुत्ता लॉन में तेजी से दौड़कर प्रेरित करता कि बेटा उसके साथ दौड़े। वह परिसर में रहनेवाले गिरगिट, गिलहरी की ओर बिजली जैसी तेजी से झपटता था। पेट को फारिग होने के लिये नियत समय पर सुबह शाम टहलाने ले जायें। उसका नित्य कर्म और टहलना दोनों हो जायेगा।
आत्मीयता: हमें याद रखना चाहिये पशु उन्मुक्त रहना चाहते हैं, पालकर हमने इन्हें बंधक बनाया है। दायरे में रहते हुये ये अपनी जरूरतों के लिये स्ट्रीट डॉग की तरह संघर्ष करते हुये जुझारू नहीं बन पाते हैं। इनकी जरूरतें हमें पूरी करनी हैं। पेट को सहलाना-पुचकारना जरूरी है। सहलाने पर ये शांत और मग्न भाव से अपनत्व और आराम को पूरी तरह जज्ब करते हैं। हमारे और इनके बीच बांडिंग बनती है। इन्हें अनदेखा किया जाये तो उपेक्षित महसूस करते हैं। धीरे-धीरे हमसे दूरी बना लेते हैं और निर्देश का पालन करना छोड़ देते हैं। पेट सुरक्षा देने, मनोरंजन करने के साथ अकेलापन भी दूर करते हैं। इनकी उपस्थिति से लगता है कोई आस-पास है। कहीं से आहट आ रही है। कुछ दिनों के लिये बाहर जायें तो इनका समुचित प्रबंध करके जायें अन्यथा भय, असुरक्षा, असहजता के कारण ये भोजन का त्याग कर देते हैं। बीमार पड़ जाते हैं। परेशान होते हैं। देखने को मिलता है शुरुआती जोश ठंडा पड़ते ही लोग इन्हें दुरदुराने लगते हैं या भगा देते हैं। फिर ये कहीं ठौर नहीं पाते।
घर में जगह नहीं मिलती। बाहर स्ट्रीट डॉग जगह बनाने नहीं देते। जब भी ये बोझ लगें उन दिनों को याद करें जब इन्हें बच्चों की तरह दूध आदि देकर मजबूत बनाया होगा। इनका मल-मूत्र साफ किया होगा, व्यवस्थित तरीके से रहने का अभ्यास कराया होगा। जब वे कर्तव्य करने को तैयार हैं उन्हें भगा देना अमानवीय है। यदि पेट रखा है तो उसके अंतिम समय तक उसकी केयर करें। इन पर जितना खर्च होता है उससे अधिक ये सर्विस देते हैं। जीव को सताना पाप माना जाता है। इसे पाप न भी मानें तब भी इन्हें तिरस्कृत करने की ग्लानि होती है। लेकिन मनुष्य स्वार्थ और मौकापरस्ती नहीं छोड़ते। जब तक ऊंट, घोड़े, गाय से कमाई होती है उसकी केयर करते हैं। जब वे अक्षम हो जाते हैं उन्हें न उचित आहार देते हैं न आराम। कालांतर से गाय घरेलू पशु रही है। उसे पूज्यनीय माना जाता है लेकिन वह जब तक दूध देती है लोग उसे आहार देते हैं। दूध बंद होते ही सड़कों पर विचरने के लिये छोड़ देते हैं।
अंत में जरूर कहूंगी मन बहलाव के लिये पक्षी, मछली, पशु न पालें। पालते हैं तो उन्हें अपनी जिम्मेदारी मानें। थोड़े से आहार, थोड़े से प्यार से ये हमारे सच्चे साथी बन जाते हैं।
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सुषमा मुनीन्द्र