बांझपन को लेकर गलतफहमियां
देश के करोड़ों दंपति संतान-हीन हैं। संतानोत्पति को लेकर या तो उन्हें सही जानकारी नहीं, या वे गलत-फहमियों का शिकार हैं। देश की जानी-मानी वंध्यत्व विशेषज्ञ का विशेष लेख –
महिलाओं में बढ़ते बांझपन के कारण क्या हैं?
जान-बूझकर विवाह और मातृत्व टाल देना। कॅरियर के चक्कर में आज-कल महिलाओं का न तो अपनी सेहत पर ध्यान है, न निजी जीवन पर। उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है संतान पैदा करना कठिन होता जाता है। बढ़ते बांझपन के दूसरे कारण है अंतःस्रावी अवरोधकों में मौजूद प्लास्टिक (Endocrine Disruptors), सौंदर्य प्रसाधन, शैंपू, लोशन, खिलौने और ऑफिस सप्लाई। मुंबई के जसलोक अस्पताल के फर्टिलट्री इंटरनेशनल फ्रीटिलिटी सेंटर के डॉयरेक्टर के रूप में प्रैक्टिस करते समय मैंने बहुत सी ऐसी युवतियों को देखा है, जिनके गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब को टीबी की वजह से भी काफी नुकसान पहुंचा है। एंडोमेट्रियोसिस (जिसमें गर्भाशय की परत की कोशिकाएं अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब और अन्य पैल्विक अंगों पर फैलने लगती हैं) और एडेनोमायोसिस (गर्भाशय की मांसपेशियां बढ़ना) से भी बांझपन बढ़ रहा है।
प्रजनन क्षमता की परख के लिए क्या टेस्ट कराने चाहिए?
पिछले रिकॉर्ड की समीक्षा के साथ महिला की संपूर्ण चिकित्सा परीक्षा। कुछ महत्वपूर्ण हार्मोन परीक्षण हैं डिंबाशय (Ovary) में डिंबों के भंडार का परीक्षण करने के लिए एंटी मुलेरियन हार्मोन टेस्ट और प्रोलैक्टिन टेस्ट, यानी उस टेंशन हार्मोन की जानकारी, जो डिंबोत्सर्ग चक्र का अभिन्न अंग है। एफएसएच (फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन) और एलएच (ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन) टेस्ट भी कराने को कहा जा सकता है। ब्लड शुगर टेस्ट और टीएसएच (थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन) टेस्ट भी कराए जाने चाहिए। थायरॉयड रोग से पीड़ित कुछ महिलाओं में उच्च एंटी-थायराइड एंटीबॉडीज हो सकती हैं, जो गर्भपात का कारण बन सकती हैं। कुछ परिस्थितियों में डॉक्टर आपको डीएचईएएस (डायहाइड्रोएपियनड्रोस्टेरोन सल्फेट), कोर्टिसोल, इंसुलिन, एओए (एंटीओवेरियन) जैसे विशेष टेस्ट्स के लिए भी कह सकते हैं। कुछ अन्य महत्वपूर्ण टेस्ट्स हैं ब्लड काउंट, पेशाब, सीरम कैल्शियम और थैलेसीमिया स्थिति की जानकारी के लिए टेस्ट।
यदि गर्भपात बार-बार हो रहा हो तो थ्रोम्बोफिलिया प्रोफाइल, कैरियोटाइपिंग द्वारा जेनेटिक टेस्टिंग, एडवांस्ड जेनेटिक टेस्टिंग (टोटल जीनोम टेस्टिंग) और टॉर्च पैनल जैसे विशेष टेस्ट। फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध होने के संदेह पर टीबी संबंधित परीक्षण। डिम्बग्रंथि अल्सर, एंडोमेट्रियोसिस और एडेनोमायोसिस की हालत में अत्यंत दुर्लभ मामलों में डॉक्टर सीटी / एमआरआई स्कैन। प्रोलैक्टिन जब बहुत ज्यादा हो जाए तो मस्तिष्क का एमआरआई। डॉक्टर के पास जब आप पहली बार जाएं तो वह ट्रांसवजाइनल अल्ट्रासाउंड से इस बात का पता लगाएंगे कि आपके पेल्विक अंग सामान्य स्थिति में हैं या नहीं। यदि उन्हें ट्यूब ब्लॉक होने या पेल्विक ऐडहीशन (सटे या चिपके होने) का संदेह है तो वह या तो हिस्टेरोसाल्पिनजोग्राम या हिस्टेरोस्कोपी (गर्भाशय के विकारों की जांच) के साथ या उसके बिना लैप्रोस्कोपी के लिए भी कह सकते हैं। यदि टीबी के साथ गर्भाशय के संक्रमण का संदेह हो तो एंडोमेट्रियल बायोप्सी की जाती है। ईआरए (एंडोमेट्रियल रिसेप्टिविटी एसे) नामक टेस्ट भी आईवीएफ के फेल होने के बारे में महत्वपूर्ण सुराग देता है।
क्या बांझपन लाइफ स्टाइल के विकारों से भी हो सकता है?
संभव है। कई युगलों को बेड रूम के बजाय बोर्ड रूम ज्यादा रास आने लगा है। वे भूल जाते हैं कि उन्होंने आखिरी बार सेक्स कब किया था। नींद की कमी शरीर की हार्मोनल लय को बदल देती है। फास्ट फूड भी लाइफ स्टाइल के विकारों का कारण है। इसी अस्वास्थ्यकर जीवन शैली के कारण प्रजनन की उम्र में कई युवा महिलाएं पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से पीड़ित हैं, जो एनोव्यूलेशन (डिंब उत्सर्जन न होना), मोटापा और मधुमेह का कारण बन रही हैं।
क्या बांझपन भावनात्मक रूप से सेहत पर भी असर डालता है?
जो दम्पत्ति निःसंतान होते हैं उन्हें परिवार और दोस्तों के भावनात्मक दबाव का सामना करना पड़ता है। यदि वे वंध्यत्व के लिए एक-दूसरे पर दोषारोपण करें तो बांझपन से वैवाहिक बंधन भी कमजोर हो सकता है। यह अवसाद का भी कारण बन सकता है। बांझपन का उपचार अपने-आप में भी भावनात्मक, शारीरिक और आर्थिक रूप से कठिनाइयां बढा सकता है। इलाज को लेकर लोग अवास्तविक उम्मीदें भी उसका कारण हैं।
मुंबई के जसलोक अस्पताल में न्यूरोसाइकिएट्रिस्ट और मेडिकल रिसर्च के निदेशक डॉ‧ राजेश पारीख ने बांझपन और इससे जुड़े भावनात्मक तनाव और अवसादों पर दुनिया के सबसे बड़े अध्ययनों में से एक का निदेशन किया है। इसमें युगलों को तनाव दूर करने के विभिन्न तरीकों के बारे में परामर्श दिया जाता है। हम इन युगलों को एक-साथ समय बिताने के लिए बढाव़ा देते रहते हैं। हम उनसे आग्रह करते हैं कि वे परामर्श करने के लिए हमारे पास एक-साथ आएं, एक-साथ व्यायाम और फिल्में देखने जाएं, एक साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताएं। और हां, धूम्रपान छोड़ दें।
बांझपन से जुड़े मिथक?
मेरी पुस्तक The Complete Guide to Becoming Pregnant में बांझपन से जुड़े कुछ मिथकों पर एक पूरा अध्याय है।
मिथक : मसालेदार भोजन खाने से डिंबोत्सर्जन घट जाता है। यह कम शुक्राणु संख्या, गर्भपात और समय से पहले प्रसव का भी कारण है।
तथ्य : मसालेदार भोजन करने से जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) प्रणाली कभी-कभी दिक्कत पैदा कर सकती है। कभी-कभी यह सीने में जलन के कारण भी बन सकता है।
मिथक : वीर्य विश्लेषण से पहले, या आईवीएफ / आईसीएसआई / स्पर्म फ्रीजिंग के लिए नमूना देने से पहले सात से आठ दिनों तक सेक्स में संयम की आवश्यकता होती है।
तथ्य : वीर्य के एक अच्छे सैंपल के लिए दो से चार दिन का परहेज काफी है।
मिथक : हस्तमैथुन से शुक्राणुओं की संख्या कम हो जाती है।
तथ्य : हस्तमैथुन से प्रजनन क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
मिथक : अगर संभोग के बाद स्खलित वीर्य योनि से बाहर आ जाए तो गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है।
तथ्य : स्खलित वीर्य योनि में कुछ मिनटों के बाद तरल हो जाता है और इसका कुछ हिस्सा बाहर आ सकता है। इससे गर्भधारण की संभावना कम नहीं होती है।
मिथक : सेक्स की पोजीशन से होने वाले शिशु के लिंग का निर्धारण होता है।
तथ्य : सेक्स की पोजीशन का शिशु के लिंग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
मिथक : रोजाना सेक्स करने से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।
तथ्य : नहीं। उल्टे इससे ओव्यूलेशन के दिन शुक्राणुओं की संख्या में कमी आ सकती है।
मिथक : बच्चा होने के बाद पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) खत्म हो जाता है।
तथ्य : पीसीओएस वह स्थिति है, जिसका आनुवंशिक आधार होता है। इसके लिए इलाज जारी रखना पड़ सकता है।
मिथक : रेट्रोवर्टेड यूटरस (उल्टा गर्भाशय) बांझपन का कारण बनता है।
तथ्य : लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं में रेट्रोवर्टेड गर्भाशय मौजूद होता है। जब तक यह उलटी स्थिति में स्थिर नहीं होता, तब तक इसका प्रजनन क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मिथक : आईवीएफ कराने के बाद सभी रोगियों को पूर्ण आराम की आवश्यकता होती है।
तथ्य : आईवीएफ करने के बाद महिलाएं सामान्य जीवन जी सकती हैं। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि आईवीएफ के बाद बेड रेस्ट करने वाली महिलाओं के ग्रुप की गर्भावस्था दर में उन लोगों की तुलना में कोई वृद्धि नहीं हुई, जिन्होंने आईवीएफ के बाद बेड रेस्ट किया।
पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के साथ आईवीएफ और प्रदूषण
हम जो भी खाते हैं, पीते हैं या जिस हवा में सांस लेते हैं-विषाक्त पदार्थ उन सबमें मौजूद होते हैं। ऐसे पदार्थ धातु, रसायन और अंतःस्रावी विघटनकारी रसायन (ईडीसी) हो सकते हैं। इसलिए खाद्य पदार्थ ऐसे चुनें जिनका स्रोत जैविक हो और उनपर कीटनाशकों का लेप न लगा हो। खान-पान में प्रसंस्कृत भोजन (प्रोसेस्ड फूड) की मात्रा कम रखें। गहरे समुद्र में पाई जानेवाली मछलियों, मसलन जैसे मैकेरल और सोर्ड फिश खाने से बचें। पेंट, वार्निश, हेयर डाई, क्लीनिंग एजेंट और सौंदर्य प्रसाधनों के संपर्क में आने से बचें।
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डॉ. फिरूजा पारीख