आप बड़े अजीब हैं
कभी बड़े आप हुआ करते थे, आज कल, बड़े अजीब हो गए हैं। वह मुझसे आयु में छोटा है, पर कद में बडा है। वह मेरा प्रिय है। कल मार्ग में अपने मित्र के साथ टकरा गया। मुझे देखते ही अमेरिकी लहजे में बोला-अंकल जी, आपने ठीक नहीं किया, बड़े अजीब आदमी हो!’
शुक्र है उसने बड़ी इज्जत से बेइज्जती की। उसने मुझे अजीब ही सही, पर आदमी तो कहा, जी भी लगाया। प्रिय व्यक्ति प्रिय हो सकता है, अजीब व्यक्ति प्रिय नहीं होता। अजीब व्यक्ति अजीब प्रश्न जो करता है। जो आपका स्वार्थ नहीं साधता, वह बडा अजीब होता है। अजीब लोग समय के साथ नहीं चलते हैं, वे अजायबघर की वस्तु मात्र होते हैं।
कहते हैं क्षमा बड़न को सोहत है छोटन को उत्पात। यह दीगर बात है कि कुछ छोटे, छोटे होकर उत्पात करते हैं और बड़े होकर भी उत्पात करते हैं। उत्पात किया और चरण छू लिया। प्रजातंत्र की तो परिभाषा यहीं है कि पांच वर्ष तक उत्पात करो और फिर चरण धूल लो-उसे फांक लो। ऐसे लोग धूल में शतरंज खेल-खेल कर बड़े होते हैं तथा बड़े होते ही धूल झाड़ लेते हैं। इनके हाथ पहले चरण छुवाई करते हैं, घुटना छूते हैं, दूर से पायं लागन करते हैं, ‘पूजनीय’ चरणों को उत्पाती अड़ंगी मारते हैं और स्वयं बड़े हो जाते हैं।
मुझ जैसे बड़े, अजीब वस्तु होते हैं तो उन जैसे छोटे, अजीब हरकती होते हैं।
मैंने कहा – हे मेरे अजीज, मैंने ऐसा क्या कर दिया जो ठीक नहीं था और मैं बडा अजीब हो गया?
– आपको मैंने अपने बेटे की बर्थडे पार्टी पर इनवाइट किया था और आप आए नहीं। आपने तो मेरे इनवाइट को लाइक तक नहीं किया।
– मुझे तो नहीं मिला, कब भेजा था?
– व्हाट्स एप्प किया था।
– तुम तो जानते ही हो कि मुझे व्हाट्स एप्प ठीक से कहां आता है।
– आप भी पिछड़े ही रहेंगे अंकल। पिछली बार तो सिखाया था, फेसबुक पर आपका एकाउंट भी बनाया था। मैंने फेसबुक पर भी इनविटेशन डाला था। अंकल फेसबुक पर मेरे पांच हजार फ्रेंड और ढेर फालोअर हैं, खूब सारे लाइक और कमेंट आए।
– फेसबुक के सारे दोस्त आए थे?
– नहीं अंकल वो तो केवल इन्फरमेशन और पब्लिसिटि के लिए होता है। मैंने फोटोज के साथ अगले दिन पोस्ट किया था। और मिठाई के डिब्बे की फोटो भी। सब वर्चुअल फ्रेंड हैं, जिन्हें बुलाना था उन्हें कार्ड व्हाट्स एप्प कर दिया था।
– मेरे अजीज,एक फोन ही कर देता, मैं बडा अजीब होने से बच जाता।’
इतने में, मेरे अजीज के साथ खड़े उनके ‘शुभचिंतक’ बोले- ये प्रतिभाशाली युवक उचित कह रहा है, त्रुटि आपकी ही है। यह लालटेन युग नहीं है। और कैसी शिक्षा दे रहे हैं आप इसे? आप जैसे ही युवा पीढ़ी को दिग्भ्रमित करते हैं, उसे भ्रष्टाचार सिखाते हैं।
– भ्रष्टाचार ! बड़ी अजीब बात कर रहे है …मैं अपने अजीज को बेईमानी सिखा रहा हूं, उसे जालसाज बना रहा हूं …?
– आप इसे भ्रष्ट हिंदी सिखा रहे हैं, आपका आचरण भ्रष्ट है। हिंदी भाषा को आप जैसे लोगों ने ही भ्रष्ट किया है। आप हिंदी के भ्रष्टाचारी है… हिंदी को उर्दू की बैसाखी नहीं चाहिए, हमारी हिंदी इतनी गरीब नहीं है।’
– पर हिंदी का प्रयोग तो गरीब लोग ही करते हैं।
– क्या बात करते हैं श्रीमान! करोड़ों कमाने वाले फिल्मस्टार, चुनावकाल में अहिंदीभाषी करोड़पति वोटार्थी और करोड़ों वाली कंपनी के बड़े-बड़े उत्पादों के विज्ञापन हिंदी का प्रयोग करते हैं… वो गरीब हैं?
– प्रयोग नहीं दुरुपयोग करते हैं। वो भाषा को अधिक भ्रष्ट करते हैं।
– चलिए जो भी हो, हिंदी तो फल फूल रही है न…
मैंने कहा-फूल ही रही है, फल तो… और ये बताएं जब मेरा अजीज हिंदी में अंग्रेजी की मिलावटी भाषा बोल रहा था तब आपने कुछ नहीं टोका ?
– ये तो अभी युवा है…
– ये युवा है तो मैं लेखक हूं। मेरे पात्र अपनी जुबान बोलते हैं, शोधग्रंथ की जुबान नहीं।
– लेखक होने का अर्थ ये नहीं है कि…
हिंदी को गुत्मगुथा होते देख युवा शक्ति समझौतार्थ कूदी-अरे छोड़िए न कमल जी, मेरे अंकल बहुत बड़े लेखक हैं। बहुत बुक्स लिखी हैं इन्होंने…आप तो हिंदी वाले हैं, आपने इनका नाम श्री… सुना ही होगा।
अचानक कमल जी दंडवत की मुद्रा में आ गए और बोले-आप…. जी हैं। आप तो अति उत्तम लिखते हैं। आपकी क्या भाषा है, शैली है! आप तो हास्य व्यंग्य के शीर्ष हैं … क्षमा करें… आपको दंडवत प्रणाम है।
– कोई बात नहीं।
– मैं हूं रमेश ‘कमल’। पहले मैं रमेश ‘हाथी’ के नाम से, आपकी तरह हास्य-व्यंग्य लिखता था पर मंच की पॅलिटिक्स के कारण जम नहीं पाया। घटिया लोग मेरे नाम का उपहास करते थे। फिर मैं रमेश ‘हाथ’ के नाम से लिखने लगा। पर कोई उपलब्धि नहीं हुई। आजकल मैं रमेश ‘कमल’ के नाम से लिख रहा हूं। श्री… तो आप अभिन्न मित्र हैं। वे तो विश्व हिंदी सम्मेलन समिति के सदस्य हैं। हम भी हिंदी की सेवा कर लें… मेरा भी कुछ जुगाड़ जमाईए न…। कमल जी के लिए मैं अजीब से अजीज हो गया था।
मैंने कहा-इसी जुगाड़ के कारण ही तो हिंदी कदमताल कर रही है। राजनीति, फिल्म, बाजार आदि सभी तो हिंदी का जुगाड़ बिठाते हैं। इसी जुगाड के कारण ही तो हिंदी यूज एंड थ्रो बन गई है।
वे दंडवत लेट गए-आप सब सही फरमा रहे हैं। देखिए मेरे नाम में कमल है… आप बस मेरी सिफारिश कर दे… हिंदी सेवा नहीं की तो जीवन बेकार हो जाएगा… उनकी आंखो से हिंदी आंसू बन टपकने लगी। उनके आचरण का तो पता नहीं, भाषा भ्रष्ट हो गई थी।
मेरे अजीज ने उन्हें उठाया और बोला-बड़े अजीब हैं कमल जी… मिला तो रहे हैं एम पी से… इत्ते बड़े होकर काहे टेसू बहा रहे हैं… हो जाएगा आपका काम।
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प्रेम जनमेजय