किसी का दर्द ले सके तो ले उधार
कोट्टाराकारा का मार थोमा एपिस्कोपल जुबली मंदिरम देश के हजारों वृद्धाश्रमों की तरह बूढ़े, निराश्रित और गंभीर रूप से बीमार उन तमाम लोगों के लिए अंतिम गंतव्य है, जिन्हें उन्हीं लोगों ने छोड़ दिया है, जिन्हें वे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। भीषण समस्याओं के बीच चल रहे इस तरह के आश्रयगृह सुविधाओं से नहीं, बल्कि जुनून से प्रेरित हैं। केरल के इस वृद्धाश्रम में हुए मार्मिक अनुभवों को मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा।
वार्ड का माहौल शोर-गुल और व्याकुलता से भरा हुआ था। बेड नंबर पांच पर कांपता हुआ एक आदमी पडा था, जिसका शरीर ऐंठा हुआ था और मुंह से झाग आ रहे थे। दर्द से कराहते वह सिर्फ एक रट लगाए हुआ था, ‘शाइनी को बुला दो’, ‘शाइनी को बुला दो।’ इसी बीच देखा व्हील चेयर पर बैठी एक युवती तेजी से दर्द से कराहते हुए उसकी ओर दौड़ी। बेड नंबर 10 पर पड़ी एक महिला भी लंगडात़े हुए पास में पड़े बेड की रॉड का सहारा लेते उसकी मदद के लिए आगे बढ़ने लगी। उसे अतिरिक्त चिकित्सा सहायता की जरूरत थी, जो वहां मेडिकल ऑफिसर और नर्स की अनुपस्थिति के कारण संभव नहीं हो पा रही था। डॉक्टर होने के नाते मैं तेजी से उसकी तरफ दौडा। मुझे देखते ही उसने वही सवाल दागा, ‘शाइनी आ रही है न?’
व्हील चेयर पर बैठी युवती ने इशारों में कुछ कहा और मैने बात समझकर तपाक से कह दिया कि ‘हां, शाइनी आ रही है।’ व्हील चेयर पर बैठी युवती के हाथों में भरी हुई सीरिंज थी। मैंने इस व्यक्ति का हाथ कसकर पकडा, ताकि युवती उसे इंजेक्शन लगा सके। उसकी नब्ज कमजोर और सांस धीमी होने लगी थी। तभी एक नर्स ऑक्सीजन सिलेंडर की ट्रॉली खींचती हुई हमारी दौड़ी चली आई। ऑक्सीजन पर रखकर हमने उसके चेहरे से खूनी झाग पोंछे। वह अब धीरे-धीरे शांत होने लगा था। पर, मुंह पर शाइनी के लिए उसकी पुकार कायम थी, धीरे-धीरे आहिस्ता होती हुई।
इसी बीच किसी ने आकर बताया – बाथरूम में कोई गिर गया है। नर्स को लेकर मैं वहां भागा। देखा, बेड नंबर 12 का बूढा आदमी गीले फर्श पर खून से लथपथ सिर के बल पडा हुआ है। यह इन्सान बाथरूम की दीवार पर अपना सिर तब तक पीटता रहा, जब तक बेहोश नहीं हो गया। बाथरूम में उसके अलावा मौजूद एक और बूढा व्यक्ति था, जो बेहद कमजोर होने के कारण मदद के लिए जोर से चिल्ला भी नहीं पाया। लिफ्ट न होने से हमें घायल को स्ट्रेचर पर लिटाकर सीढ़ियों से नीचे एंबुलेंस तक लाना पडा, जहां मैंने देखा कि उसके हाथों में जकडा फोन। सांसें उखड़ती देख एंबुलेंस ड्राइवर को मैने तत्काल पास के सरकारी अस्पताल ले जाने को कहा। फोन चेक किया तो देखा कि पिछले कई दिनों से वह किसी प्रिंस और रानी को लगातार कॉल कर रहा था-उसका बेटा और बेटी। प्रिंस इसी बेड नंबर 12 वाले का बेटा है, जो ओमान की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। प्रिंस ने फोन पर जानकरी दी कि वह अमेरिका जा रहा है और अपनी बहन रानी को पिता से मिलने के लिए कहेगा। नर्स ने बताया कि रानी एक बैंक में मैनेजर है और शेल्टर होम से कुछ ही दूरी पर रहती है। छह महीने पहले उसने पिता को यहां भर्ती कराया, फिर कभी उससे मिलने नहीं आई। संपर्क करने पर रानी ने यह कहकर कि ‘अभी ऑफिस की मीटिंग है और शाम को ही आ सकूंगी’ फोन काट दिया।
व्हील चेयर वाली लड़की की कहानी बेहद दुःखद थी। मां के गृहिणी और पिता के दिहाड़ी मजदूर की यह बेटी विदेश जाने के ख्वाहिश के साथ जब बीएससी नर्सिंग के तीसरे वर्ष में थी तो सनकी प्रेमी ने कॉलेज की छत से उसे नीचे धक्का दे दिया। गंभीर स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी के कारण उसके दोनों पैर पूरी तरह लकवाग्रस्त हो गए और उसकी हंसती-खेलती और दौड़ती जिंदगी व्हीलचेयर पर आ गई। देखभाल करने वाला कोई नहीं था, इसलिए कॉलेज के सीनियर नर्सिंग स्टाफ ने ही उसकी देखभाल की। फिजियोथेरेपिस्ट की मदद लेकर उसने अब इस वृद्धाश्रम में काम करना शुरू कर दिया। अब यह लड़की गरीब माता-पिता का खर्च भी वहन करती है। वह वार्ड के सभी बुजुर्गों और बीमार मरीजों की आंखों का भी तारा है।
इसी लड़की से मुझे बेड नंबर पांच के बारे में पता चला। यह शख्स परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था, जिसकी कंपनी ने उसकी पोस्टिंग उसके शहर से तकरीबन 4000 किलोमीटर दूर कर दी थी। बहुत दूरी होने के कारण वह काम से तीन साल में एक बार ही घर आ सकता था, वह भी महज दो-चार दिनों के लिए। शाइनी उसकी बेटी है। बेटी की याद पर एक बार वह बिना छुट्टी लिए हमेशा के लिए घर लौट आया। आर्थिक संकट की वजह से पति-पत्नी के बीच अक्सर झगडा होने लगा। मिर्गी की शिकायत हो गई, जिसके दौरे जब उसे बार-बार पड़ने लगे तो पत्नी ने यहां लाकर उसे छोड़ दिया। अब यह शख्स हर दिन शाइनी के इंतजार में उसका नाम रटता रहता है। उधर, शाइनी और उसकी मां ने इसका नंबर ब्लॉक कर रखा है।
ये दृश्य केरल में मार थोमा एपिस्कोपल जुबली मंदिरम, कोट्टाराकारा में एक वृद्धाश्रम-सह धर्मशाला के थे, जहां इस तरह की सुविधा का मुझे फर्स्ट हैंड अनुभव हुआ। यह आश्रयगृह गंभीर रूप से बीमार, बूढ़े और निराश्रित उन तमाम लोगों का अंतिम गंतव्य हैं, जिन्हें उन लोगों ने यहां छोड़ दिया है, जिन्हें वे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। पैसों के साथ यहां कर्मचारियों, स्थान और साधनों की भारी कमी है। अंतर्राष्ट्रीय दानकर्ताओं से पहले कुछ वित्तीय सहायता प्राप्त होती थी, लेकिन विदेशी धन प्राप्त करने से संबंधी सरकारी नियमों में हुए बदलाव के कारण वह भी अचानक बंद हो गया। आश्रम के पास डॉक्टरों को देने के लिए पैसे नहीं हैं। इसे नर्सों की मदद से चलाते हैं वे स्वयंसेवक, जो वेतन से नहीं, बल्कि जुनून से प्रेरित हैं। अधिकांश वृद्धाश्रमों में आप इसी तरह की कहानियां पाएंगे।
विचारों में यह झंझावात चल ही रहा था कि बेड नंबर 10 पर पड़ी बूढ़ी अम्मा लंगडात़ी हुई किचन से चाय के लिए कप-फ्लास्क लेकर आईं। बातचीत से पता चला कि दोनों बेटियों को अच्छी शिक्षा देने के लिए वे पांच वर्ष दुबई में टीचर रहीं। पोते-पोतियों की फोटो दिखाते हुए बहुत गर्व से उन्होंने बताया कि दोनों बेटियां पीएचडी हैं और अमेरिका व जर्मनी में सेटल हैं, हालांकि पोते-पोतियों से मिलने का मौका अभी तक नहीं मिल पाया है। बूढ़ी अम्मा इसी बीच अनियंत्रित मधुमेह के कारण गैंग्रीन की चपेट में आ गईं हैं, जिसके कारण एक पैर काटना पडा है। पति के कैंसर के इलाज में उनकी सारी बचत खत्म हो जाने से आर्थिक विपन्नता के कारण अब वे काम यहीं करने लगी हैं। ‘बेटियों से संपर्क होता है?’ प्रश्न पर उनका जवाब है, ‘अब यही परिवार है, जो मुझसे बहुत अधिक प्यार करता है।’ पर, उनके मन में आवेग चल रहा है, जो दिखता है उनकी आंखों से निकले आंसुओं की बाढ़ से।
चाय की अंतिम चुस्की ले ही रहा था, तभी नर्स आई बताने कि बेड नंबर 12 वाले की अस्पताल ले जाते वक्त मौत हो गई। सुनते ही दिल एकदम से बैठ गया। एक जिंदादिल इन्सान अपने राजकुमार और राजकुमारी का इंतजार करते-करते मर गया, जबकि एक दूसरा इन्सान अपनी शाइनी को देख पाने की उम्मीद में बेहोश पडा हुआ है। बूढ़ी अम्मा ने अनायास ही मेरे मन में चल रहे मंथन को भांप लिया था और मूड बदलने के लिए एक और कप चाय की पेशकश कर दी-यह कहते हुए कि ये सब घटनाएं अब उसे परेशान नहीं करतीं। उसे खुश रखती है बस, एक गर्म प्याला चाय।’
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डॉ‧ पंकज चतुर्वेदी